गोर्की ने अमेरिकी समाज की जिन सच्चाइयों को उजागर किया था, वही आज भारत में दिखाई दे रही हैं

अशोक पांडेय

1906 की अपनी अमेरिका-यात्रा के बाद मैक्सिम गोर्की ने तत्कालीन अमेरिकी समाज को लेकर कुछ बेहद तीखे लेख लिखे थे जो ‘पीले दैत्य का नगर’ शीर्षक किताब के रूप में छपे. पैसे की अंधी दौड़ में हर मानवीय मूल्य को अपनी सुविधा के हिसाब से तोड़-मरोड़ कर आम जन को बरगलाने का जो खेल उस समय खेला जा रहा था उसकी स्पष्ट प्रतिछाया आज हमारे समाज में दिखाई देती है।

इस बेहद ज़रूरी किताब के एक लेख में गोर्की का सामना एक ऐसे शातिर शख्स से होता है जो खुद को नैतिकता का पुरोहित बताता है। वह एक ऐसी संस्था द्वारा दिहाड़ी पर रखे गए असंख्य गुर्गों में से एक है जिसका इकलौता काम नैतिकता की आम समझ को ऐसी दिशा में मोड़ना है जहाँ वह केवल रईसों और सत्ताधारियों के पहले से सुविधासंपन्न जीवन अधिक आसान बना सके। उस छद्म नैतिकता में उनके द्वारा किये जाने वाले सारे पाप बगैर किसी हलचल के जज़्ब हो जाते हैं।

संस्था कैसे काम करती है इस बारे में वह कुछ दिलचस्प बातें बताता है,

“नैतिकता के बारे में लगातार एक कोलाहल चलता रहना चाहिए ताकि जनता के कान बहरे होते रहें और उसे कभी सच सुनने को न मिले। अगर आप नदी में ढेर सारे कंकड़ फेंकें तो उनकी बगल से एक बड़ा लठ्ठा बिना लोगों की निगाह में आए निकल सकता है। या अगर आप बिना बहुत सावधानी बरते अपने पड़ोसी की जेब से उसका बटुआ निकालते हैं, लेकिन तुरंत ही फुटपाथ पर मुठ्ठीभर चने चुराकर भाग रहे बच्चे की तरफ लोगों का ध्यान बंटा देते हैं तो आप बच जाएँगे। बस आपको अपनी पूरी ताकत से चिल्लाना है – ‘पकड़ो-पकड़ो’। हमारा ब्यूरो बहुत सारी छोटी-छोटी वारदातें करता है ताकि बड़े पापों पर किसी की निगाह न जा सके।”

“मिसाल के लिए शहर में अफवाह उड़ने लगती है कि एक सम्मानित नागरिक अपनी बीवी को पीटता है। संस्था तुरंत मुझे और बाकी कर्मचारियों को आदेश देती है कि हम अपनी बीवियों को पीटें। हम तुरंत वैसा ही करते हैं। बीवियों को यह पता ही होता है, पर वे अपनी पूरी ताकत से चिल्लाती हैं। सारे अखबार इस बारे में लिखते हैं और इससे उपजने वाले कोलाहल में सम्मानित नागरिक के बारे में उड़ रही अफवाहें थम जाती हैं। अफवाह पर कौन ध्यान दे, जब आपके सामने ठोस तथ्य मौजूद है?”

“हो सकता है कि अफवाहें उड़ने लगें कि सीनेट के सदस्य रिश्वत लेते हैं। संस्था तुरंत कई सारे पुलिस अधिकारियों द्वारा रिश्वत लिए जाने की घटनाओं को जनता के सामने रख देती है। एक बार फिर तथ्यों के सामने अफ‌वाहें डूब जाती हैं। ऊँची सोसाइटी में कोई साहब किसी महिला का अपमान कर देते हैं। इस बात की तुरंत व्यवस्था कर दी जाती है कि होटलों और सड़कों पर कई सारी महिलाओं का अपमान किया जाए। ऊँची सोसाइटी वाले साहब का अपराध इस तरह के अपराधों की श्रृंखला में खो जाता है।”

“संस्था उच्च-वर्ग को जनता के फैसले से बचा कर रखती है। साथ ही नैतिकता के विरुद्ध हो रहे अपराधों को लेकर एक सतत कोलाहल बनाया जाता है ताकि लोगों को छोटी वारदातों के अलावा कुछ और के बारे में सोचने का अवसर न मिले और अमीरों के पाप छिपे रहें।”

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