झिमड़ी परियोजना झारखंड में बनी मिसाल, स्ट्रॉबेरी, करेला की खेती कर महिलाएं बनीं लखपति दीदी

19th November 2025

Research Desk

कभी दुमका, झारखंड की सोमा सोरेन के लिए खेती घाटे का सौदा थी। खेत तो पर्याप्त थे, पर पूंजी और सिंचाई साधन के अभाव में उनका परिवार तंगहाली में जी रहा था। बच्चों की पढ़ाई की फीस और घर का खर्च चलाना मुश्किल हो जाता। धीरे-धीरे उन्होंने खेती में मेहनत करना भी छोड़ दिया और यह मान लिया कि गरीबी ही नियति है। लेकिन तस्वीर तब बदली, जब वे झिमड़ी परियोजना से जुड़ीं। ड्रिप इरिगेशन तकनीक अपनाकर उन्होंने करेले की व्यावसायिक खेती शुरू की। अब सालभर करेला, मिर्च और स्ट्रॉबेरी जैसी नकदी फसलों से उनकी आमदनी चार लाख रुपये से अधिक हो चुकी है। कुछ समय पहले ही उन्होंने केवल करेला बेचकर एक लाख रुपये से ज्यादा कमाए। बात यहीं खत्म नहीं होती, आज सोमा जैसी कहानियां झारखंड के कई जिलों में लिखी जा रही हैं।

किसानों की जिंदगी बदलने वाली परियोजना

झारखंड माइक्रो ड्रिप इरिगेशन परियोजना (JHIMDI), जिसे स्थानीय लोग झिमड़ी परियोजना के नाम से जानते हैं, किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। इसे ग्रामीण विकास विभाग की झारखंड स्टेट लाइव्लीहुड प्रमोशन सोसाइटी (JSLPS) जापान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (JICA) के सहयोग से लागू कर रही है। अप्रैल 2025 तक इस परियोजना ने आय और उत्पादकता दोनों में ऐतिहासिक वृद्धि दर्ज की है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इसके लाभ को देखते हुए इसे दो वर्ष बढ़ाकर 2027 तक करने का फैसला लिया। अब इसका सीधा असर कम से कम 30 हजार से अधिक किसानों पर पड़ेगा।

महिलाओं की बड़ी भूमिका

इस परियोजना की सबसे खास बात यह है कि इसका केंद्र महिला किसान हैं। दुमका से लेकर खूंटी और रांची तक, महिलाएं ‘लखपति दीदी’ बन रही हैं। वर्तमान में 9 जिलों के 30 प्रखंडों की 28,298 महिला किसान माइक्रो ड्रिप इरिगेशन सिस्टम के जरिए खेती कर रही हैं। उन्हें पॉली नर्सरी हाउस, वर्मी कम्पोस्ट, उन्नत बीज और तकनीकी सहयोग उपलब्ध कराया जा रहा है।

खूंटी की विनीता कच्छप इसका उदाहरण हैं। उन्होंने 2022 में फ्रेंच बीन्स की खेती से शुरुआत की थी। महज 12,300 रुपये की लागत से 51,540 रुपये का लाभ कमाया। अब वे करेले की खेती करती हैं और सालाना करीब 1.20 लाख रुपये कमा रही हैं।

रांची के नगड़ी प्रखंड की सूर्या देवी की कहानी भी प्रेरक है। पहले वे सीमित संसाधनों से बमुश्किल गुजारा करती थीं, लेकिन ड्रिप इरिगेशन तकनीक ने उनकी जिंदगी बदल दी। अब वे उच्च गुणवत्ता वाली सब्जियां उगाकर हर साल दो लाख रुपये कमा रही हैं।

आय और उत्पादन में रिकॉर्ड बढ़ोतरी

झिमड़ी परियोजना से जुड़े किसानों की औसत वार्षिक आय रु. 8,806 (बेसलाइन सर्वे) से बढ़कर रु. 80,821 (2024-25) हो गई। यानी आय लगभग दस गुना हो गई। रांची जिले के ओरमांझी, कांके और कुड़ू जैसे इलाकों में किसान केवल रबी सीजन में ही 32,000 से 48,000 रुपये कमा रहे हैं। यही नहीं, फसल उत्पादन में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ। औसत उपज 536 किलो से बढ़कर 1,318 किलो प्रति 0.1 हेक्टेयर हो गई। आलू, लौकी और फूलगोभी जैसी पारंपरिक फसलों के साथ-साथ स्ट्रॉबेरी, मिर्च और मटर जैसी नकदी फसलें किसानों की आय में नई जान डाल रही हैं।

तकनीक से आसान होती खेती

झिमड़ी परियोजना के तहत अब तक 28,298 माइक्रो ड्रिप सिस्टम स्थापित किए जा चुके हैं, जिससे 2,829 हेक्टेयर क्षेत्र लाभान्वित हुआ है।

इससे तीन बड़े फायदे हुए-

•           पानी की बड़ी बचत हुई।

•           सालभर खेती संभव हो पाई।

•           उत्पादन और गुणवत्ता दोनों बढ़े।

तकनीकी प्रशिक्षण इस बदलाव की रीढ़ है। 13,000 से अधिक किसानों को नई तकनीकों का प्रशिक्षण दिया गया है। 50 एफटीसी, 88 बीआरपी और 1,000 से ज्यादा कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन (CRP) किसानों को लगातार सहयोग दे रहे हैं। 5,224 किसान Samiksha ऑनलाइन मॉड्यूल से भी जुड़े हैं।

बुनियादी ढांचे से मजबूत होते गांव

परियोजना केवल सिंचाई तक सीमित नहीं रही। अब तक 13,289 पॉली नर्सरी हाउस और 21,871 वर्मी कम्पोस्ट इकाइयां बनाई गई हैं। 15 सोलर कोल्ड चैंबर, 198 इम्प्लीमेंट बैंक और 14 मल्टी पर्पज कम्युनिटी सेंटर (MPCC) भी सक्रिय हो चुके हैं। इनका संचालन उत्पादक समूहों के हाथों में है, जिससे गांव में रोजगार और सहयोग की नई व्यवस्था खड़ी हुई है।

जल संरक्षण की दिशा में कदम

झिमड़ी परियोजना का दूसरा बड़ा पहलू जल प्रबंधन है। यह केवल खेती तक सीमित नहीं, बल्कि जल संकट से निपटने का एक मॉडल है। इसके तरत- रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से वर्षा का पानी इकट्ठा कर भूजल पुनर्भरण किया जा रहा है। ब्लॉक वाइज डेटा कलेक्शन से हर इलाके की जरूरत के हिसाब से उपाय किए जा रहे हैं। फिल्ट्रेशन तकनीक से पानी को शुद्ध कर खेती में इस्तेमाल किया जा रहा है। स्मार्ट सेंसर सिस्टम जल स्तर और गुणवत्ता की रियल-टाइम निगरानी कर रहे हैं। कुल मिलाकर इन   तकनीकों ने झारखंड को स्मार्ट वाटर कंजर्वेशन की दिशा में आगे बढ़ाया है।

गांव से बाजार तक बनी पहुंच

परियोजना का असर सिर्फ खेतों तक नहीं रहा। अब किसान संगठित समूहों के जरिए अपनी उपज सीधे बाजार तक पहुंचा रहे हैं। मोलभाव की क्षमता बढ़ने से उन्हें फसल का बेहतर मूल्य मिल रहा है। दुमका, रांची और खूंटी के हाट-बाजारों में अब महिला किसान अपनी पैदावार बेचती दिखती हैं, और यह दृश्य गांवों की बदलती तस्वीर का प्रतीक है।

भविष्य और तरक्की की राहें

इस योजना से 2027 तक बढ़ी अवधि के दौरान 30 हजार से अधिक किसान परिवार सीधे लाभान्वित होंगे, ऐसा अनुमान है। लक्ष्य केवल आय बढ़ाना नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को टिकाऊ आधार देना है। परियोजना का विजन यह है कि झारखंड के गांव पानी की कमी और खेती की सीमाओं से निकलकर आधुनिक तकनीक आधारित कृषि का हब बनें।

आज सोमा सोरेन, विनीता कच्छप और सूर्या देवी जैसी किसान महिलाएं केवल अपने खेतों में नहीं, बल्कि पूरे समाज में मिसाल बन चुकी हैं। कभी जिनके लिए खेती बोझ लगती थी, अब वही खेती उनके लिए सम्मान और समृद्धि का स्रोत है। झिमड़ी परियोजना ने सचमुच खेतों से निकलती समृद्धि की नई धारा बनाई है।

योजना में शामिल किये प्रमुख जिले:

•           हजारीबाग

•           गुमला

•           लोहरदगा

•           रामगढ़

•           चतरा

•           गढ़वा

•           दुमका

•           कोलेरी

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