पटना
बिहार चुनाव में इस बार राजनीतिक दलों से ज़्यादा रिश्तों की रस्साकशी दिखाई दे रही है। सियासत के मैदान में अब परिवार की टीम उतरी है—कहीं पति पत्नी के लिए प्रचार कर रहे हैं, तो कहीं साली-समधन के बीच वोटों की जंग छिड़ी है। कई नेताओं ने टिकट वितरण में भी पार्टी से पहले अपने परिजनों को तरजीह दी है। अब देखना ये है कि जनता इस ‘रिश्तेदारी वाली राजनीति’ को कितना स्वीकारती है।
मांझी परिवार की चुनावी फौज
हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के प्रमुख जीतन राम मांझी इस बार पूरे कुनबे के साथ मैदान में हैं। गयाजी के इमामगंज से बहू दीपा मांझी, बाराचट्टी से समधन ज्योति देवी और जमुई के सिकंदरा से दामाद प्रफुल्ल कुमार मांझी चुनाव लड़ रहे हैं। खुद जीतन राम मांझी और उनके मंत्री पुत्र संतोष सुमन तीनों के प्रचार में जुटेंगे — यानी परिवार की एकजुट ताकत मैदान में उतरेगी।
पति के लिए पत्नी प्रचार पर
दरभंगा के गौड़ाबौराम में बीजेपी विधायक स्वर्णा सिंह अब इस बार अपने पति सुजीत कुमार के लिए वोट मांगेंगी। वे पांच साल के अपने कामकाज का हवाला देकर मतदाताओं से अपील करेंगी। उधर सासाराम में राष्ट्रीय लोक मोर्चा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने पत्नी स्नेहलता कुशवाहा को मैदान में उतारा है। वे खुद उनके प्रचार में उतर चुके हैं। बेटे दीपक कुशवाहा को भी राजनीति में उतारने की तैयारी है।
पिता-पुत्र की जोड़ी भी एक्टिव
समस्तीपुर के वारिसनगर में जदयू विधायक अशोक कुमार मुन्ना अब बेटे डॉ. मांजरीक मृणाल के लिए समर्थन मांग रहे हैं। अमेरिका से लौटे मृणाल पहली बार राजनीति में कदम रख रहे हैं। इसी तरह जहानाबाद के घोसी सीट से अरुण कुमार के बेटे ऋतुराज कुमार जदयू के प्रत्याशी हैं।
राजद में भी रिश्तों का तड़का
राजद ने मोकामा से सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी को मैदान में उतारा है, जबकि सारण के परसा से तेज प्रताप यादव की साली करिश्मा यादव को टिकट मिला है। पारिवारिक मतभेदों के बावजूद तेजस्वी यादव साली के प्रचार की कमान संभालेंगे।
सिवान में विरासत बनाम बदलाव का मुकाबला
सिवान के रघुनाथपुर में इस बार चुनाव दिलचस्प हो गया है। यहां राजद ने दिवंगत शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब को टिकट दिया है, जो पिता की विरासत संभालने मैदान में हैं। दूसरी ओर जदयू ने कई वर्षों से टिकट की प्रतीक्षा कर रहे जीशु सिंह पर भरोसा जताया है, जबकि जनसुराज पार्टी ने नए चेहरे राहुल कीर्ति सिंह को उतारा है।
ओसामा शहाब के मैदान में उतरने से यह सीट चर्चा में है। 2024 में मां हेना शहाब निर्दलीय चुनाव हार चुकी थीं, और अब बेटा उसी विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश में है। यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता रिश्तेदारी की इस नई राजनीति पर कितना भरोसा जताती है।




