Ranchi
एसकेआईपीए कैंपस में रस अरण्य झारखंड लिटरेचर एंड आर्ट्स की ओर से बुधवार को “Towards a Prosperous and Inclusive Jharkhand” विषय पर तीन दिवसीय इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस की शुरुआत हुई। पहले दिन झारखंड की मिट्टी, संस्कृति, भाषा, कला और प्रकृति से आदिवासी समुदाय के गहरे संबंध पर व्यापक चर्चा हुई।
प्रथम सत्र में इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट के डायरेक्टर कुमार राणा ने संथाली भाषा में वक्तव्य देते हुए कहा कि “जोहार” केवल अभिवादन नहीं, बल्कि एक जीवंत दर्शन है—एक ऐसा भाव, जिसमें हम एक-दूसरे में अपना अस्तित्व देखते हैं। उन्होंने कहा कि झारखंड की खूबसूरती यहां के सामाजिक ताने-बाने और प्रकृति-आधारित जीवनशैली में बसती है। इसी सत्र में विचार साझा करते हुए महादेव टोप्पो ने कहा, “सभ्य समाज प्रकृति और धरती को पूंजी की तरह देखता है, लेकिन आदिवासी समाज प्रकृति को जीवन समझता है। हम मनुष्यों से आगे बढ़कर पशु-पक्षियों तक की चिंता करते हैं, यही हमारी आत्मा है।”
सिविल सर्वेंट सुजाता प्रसाद ने झारखंड की सोहराय पेंटिंग को अद्भुत कला परंपरा बताते हुए कहा कि यह कला प्रकृति की जीवंतता को समेटे हुए है। उन्होंने झारखंड की संस्कृति पर आधारित फिल्मों की भी सराहना की।
आदिवासी विकास के विरोधी नहीं, प्रकृति के रक्षक
दूसरे सत्र में रामलखन सिंह यादव कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. अजीत मुंडा ने “जंगल के गीत” विषय पर प्रस्तुति दी। उन्होंने हरमू नदी के विलुप्त होते स्वरूप पर चिंता व्यक्त की और बताया कि झारखंड के कई इलाकों के नामों के पीछे गहरी सांस्कृतिक कहानियाँ छिपी हैं।
कॉलेज के ही प्रो. डी. मनीष चंद्र टुड्डू ने कहा कि हर समुदाय की अपनी परंपरा और अपनी सांस्कृतिक पहचान होती है, और यह विविधता ही झारखंड की असली शक्ति है।
छऊ नृत्य की मोहक प्रस्तुति
संध्या के सांस्कृतिक कार्यक्रम में गुरु शशाधर आचार्य की सरायकेला टीम ने छऊ नृत्य की शानदार प्रस्तुति दी, जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। एक समान परिधानों में कलाकारों की टीम ने कला, ताल और भाव के अनोखे संगम से उपस्थित सभी लोगों का मन जीत लिया।
कार्यक्रम में रवि दत्त वाजपेयी, आशुतोष कुमार ठाकुर सहित कई गणमान्य लोग शामिल हुए। संचालन प्रियंका त्यागी और विनय भारत ने किया।

