Central desk
झारखंड की पहचान उसके जंगलों, पहाड़ों और आदिवासी संस्कृति से जुड़ी है। यहां के लोग सदियों से प्रकृति के साथ रिश्ता बनाकर जीते आए हैं। उनके लिए जंगल सिर्फ पेड़ नहीं, जीवन का आधार हैं; नदी सिर्फ पानी नहीं, एक जीवंत परंपरा है। लेकिन आज जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण जैसी समस्याओं से जूझ रही है, तब झारखंड जैसे राज्य को अपनी इस प्राकृतिक समझ को तकनीकी रूप में बदलने की ज़रूरत है। और इसी दिशा में एक प्रेरणा मिल रही है — अमेरिका के नॉर्थवेस्ट इंडियन कॉलेज (NWIC) से।
जब एक ट्राइबल कॉलेज बना तकनीकी परिवर्तन का प्रतीक
वॉशिंगटन स्टेट के लुम्मी नेशन इलाके में स्थित यह ट्राइबल कॉलेज सिर्फ शिक्षा का केंद्र नहीं, बल्कि ग्रीन एनर्जी और स्वदेशी ज्ञान का संगम बन चुका है। अमेरिका के 35 ट्राइबल कॉलेजों में से एक, NWIC ने अपने कैंपस में सोलर एनर्जी से चलने वाले BeamBike ई-बाइक चार्जिंग स्टेशन और EV ARC इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग सिस्टम लगाए हैं।
अब वहां के छात्र और शिक्षक सौर ऊर्जा से चार्ज होने वाले वाहनों का इस्तेमाल कर रहे हैं। कॉलेज ने खुद के चार्जिंग स्टेशन लगाए हैं, जो न सिर्फ पर्यावरण के लिए फायदेमंद हैं, बल्कि ट्राइबल समुदाय के भीतर ऊर्जा स्वतंत्रता (Energy Sovereignty) की भावना को मजबूत करते हैं।
इस परियोजना को अमेरिकी ऊर्जा और शिक्षा विभागों ने फंड किया है और इसे ट्राइबल इनोवेशन की मिसाल माना जा रहा है। Beam Global कंपनी के सीईओ डेसमंड व्हीटली कहते हैं, “NWIC यह दिखा रहा है कि ट्राइबल समुदाय भी सुरक्षित, स्वच्छ और टिकाऊ ऊर्जा भविष्य के अग्रणी बन सकते हैं।”
झारखंड के लिए इसका मतलब क्या है
झारखंड के आदिवासी समाज ने हमेशा प्रकृति को बचाने की प्रेरणा दी है — लेकिन अब इस चेतना को नई तकनीक से जोड़ने का समय है। राज्य के कॉलेज और विश्वविद्यालय अगर NWIC जैसा मॉडल अपनाएं — यानी सौर ऊर्जा आधारित ई-बाइक चार्जिंग, इलेक्ट्रिक वाहन या कैंपस स्तर पर ग्रीन इनोवेशन — तो यह एक बड़ा सामाजिक बदलाव बन सकता है।
राज्य के प्रमुख संस्थान जैसे सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड (CUJ), बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (रांची), सिदो-कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय (दुमका) और सेलो कॉलेज (चाईबासा) इस दिशा में अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं।
रांची स्थित सेंट्रल यूनिवर्सिटी पहले से ही Environmental Science, Renewable Energy और Tribal Studies पर काम कर रही है। अगर यहां सोलर चार्जिंग स्टेशन, ई-बाइक प्रोजेक्ट या “ग्रीन कैंपस मिशन” जैसी पहलें शुरू हों, तो यह झारखंड के ट्राइबल युवाओं के लिए नई ऊर्जा क्रांति का आधार बन सकता है।
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय कृषि और पर्यावरणीय तकनीक में पहले से रिसर्च कर रहा है। अगर यह प्रयास CUJ जैसे संस्थानों के साथ जुड़े, तो झारखंड के विश्वविद्यालय संयुक्त रूप से “सस्टेनेबल एनर्जी नेटवर्क” बना सकते हैं — जो न सिर्फ अकादमिक प्रोजेक्ट होगा, बल्कि सामुदायिक आंदोलन भी।
सनशाइन पर चलने वाला झारखंड”
NWIC की प्रोफेसर एमा नॉरमन, जो Native Environmental Science विभाग की हेड हैं, कहती हैं, “हम सूरज की रोशनी पर चलते हैं — और यही हमारा भविष्य है।” झारखंड भी यही सोच अपना सकता है। आज राज्य के दूर-दराज इलाकों में सड़कों और बिजली की कमी है, लेकिन सूरज सबके पास है। अगर यह सौर ऊर्जा स्थानीय कॉलेजों, पंचायतों और समुदायों के हाथ में दी जाए, तो यह न सिर्फ बिजली का विकल्प बनेगी बल्कि स्वावलंबन का प्रतीक भी।
कल्पना कीजिए — अगर खूंटी, गुमला या दुमका के कॉलेजों में सोलर ई-बाइक स्टेशन लगें और छात्र “ग्रीन कम्यूटिंग” करें, तो यह शिक्षा, पर्यावरण और नवाचार — तीनों की एक साथ पहल होगी।
परंपरा से भविष्य की ओर
बिरसा मुंडा, सिदो-कान्हू, फुलो-झानो — इन सबने अपनी ज़मीन और अपने लोगों के लिए संघर्ष किया। आज वही संघर्ष “ऊर्जा की आज़ादी” के रूप में फिर जीवित किया जा सकता है। झारखंड का आदिवासी समाज हमेशा यह साबित करता आया है कि प्रकृति से प्रेम और प्रगति की आकांक्षा एक-दूसरे के विरोध में नहीं हैं। अगर झारखंड के युवा, विश्वविद्यालय और सरकार इस सोच को अपनाएं — तो आने वाले कुछ सालों में राज्य “खनन आधारित अर्थव्यवस्था” से आगे बढ़कर “हरित अर्थव्यवस्था (Green Economy)” की मिसाल बन सकता है।
यह सिर्फ विकास का रास्ता नहीं, बल्कि झारखंड की आत्मा की पुनः खोज है, जहां जंगलों की छांव, सूरज की ऊर्जा और युवाओं के सपने — सब एक साथ चलते हैं।
Call to Action
अब ज़रूरत है कि झारखंड के विश्वविद्यालय — खासकर सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड — इस दिशा में नेतृत्व संभालें। राज्य सरकार और स्थानीय निकायों को कॉलेजों में ग्रीन इनोवेशन लैब, सोलर मोबिलिटी प्रोजेक्ट और ट्राइबल एनर्जी रिसर्च फंड जैसी पहलें शुरू करनी चाहिए। अगर अमेरिका का एक ट्राइबल कॉलेज यह कर सकता है, तो झारखंड क्यों नहीं? सवाल सिर्फ तकनीक का नहीं, भविष्य की दिशा का है।
सूरज की रोशनी से चलेगा झारखंड: अमेरिका के ट्राइबल कॉलेज से मिल रही है नई प्रेरणा
Jharkhand New inspiration is coming from a tribal college in America
Jharkhand, inspiration, tribal college, America, innovation
Central desk
झारखंड की पहचान उसके जंगलों, पहाड़ों और आदिवासी संस्कृति से जुड़ी है। यहां के लोग सदियों से प्रकृति के साथ रिश्ता बनाकर जीते आए हैं। उनके लिए जंगल सिर्फ पेड़ नहीं, जीवन का आधार हैं; नदी सिर्फ पानी नहीं, एक जीवंत परंपरा है। लेकिन आज जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण जैसी समस्याओं से जूझ रही है, तब झारखंड जैसे राज्य को अपनी इस प्राकृतिक समझ को तकनीकी रूप में बदलने की ज़रूरत है। और इसी दिशा में एक प्रेरणा मिल रही है — अमेरिका के नॉर्थवेस्ट इंडियन कॉलेज (NWIC) से।
जब एक ट्राइबल कॉलेज बना तकनीकी परिवर्तन का प्रतीक
वॉशिंगटन स्टेट के लुम्मी नेशन इलाके में स्थित यह ट्राइबल कॉलेज सिर्फ शिक्षा का केंद्र नहीं, बल्कि ग्रीन एनर्जी और स्वदेशी ज्ञान का संगम बन चुका है। अमेरिका के 35 ट्राइबल कॉलेजों में से एक, NWIC ने अपने कैंपस में सोलर एनर्जी से चलने वाले BeamBike ई-बाइक चार्जिंग स्टेशन और EV ARC इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग सिस्टम लगाए हैं।
अब वहां के छात्र और शिक्षक सौर ऊर्जा से चार्ज होने वाले वाहनों का इस्तेमाल कर रहे हैं। कॉलेज ने खुद के चार्जिंग स्टेशन लगाए हैं, जो न सिर्फ पर्यावरण के लिए फायदेमंद हैं, बल्कि ट्राइबल समुदाय के भीतर ऊर्जा स्वतंत्रता (Energy Sovereignty) की भावना को मजबूत करते हैं।
इस परियोजना को अमेरिकी ऊर्जा और शिक्षा विभागों ने फंड किया है और इसे ट्राइबल इनोवेशन की मिसाल माना जा रहा है। Beam Global कंपनी के सीईओ डेसमंड व्हीटली कहते हैं, “NWIC यह दिखा रहा है कि ट्राइबल समुदाय भी सुरक्षित, स्वच्छ और टिकाऊ ऊर्जा भविष्य के अग्रणी बन सकते हैं।”
झारखंड के लिए इसका मतलब क्या है
झारखंड के आदिवासी समाज ने हमेशा प्रकृति को बचाने की प्रेरणा दी है — लेकिन अब इस चेतना को नई तकनीक से जोड़ने का समय है। राज्य के कॉलेज और विश्वविद्यालय अगर NWIC जैसा मॉडल अपनाएं — यानी सौर ऊर्जा आधारित ई-बाइक चार्जिंग, इलेक्ट्रिक वाहन या कैंपस स्तर पर ग्रीन इनोवेशन — तो यह एक बड़ा सामाजिक बदलाव बन सकता है।
राज्य के प्रमुख संस्थान जैसे सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड (CUJ), बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (रांची), सिदो-कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय (दुमका) और सेलो कॉलेज (चाईबासा) इस दिशा में अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं।
रांची स्थित सेंट्रल यूनिवर्सिटी पहले से ही Environmental Science, Renewable Energy और Tribal Studies पर काम कर रही है। अगर यहां सोलर चार्जिंग स्टेशन, ई-बाइक प्रोजेक्ट या “ग्रीन कैंपस मिशन” जैसी पहलें शुरू हों, तो यह झारखंड के ट्राइबल युवाओं के लिए नई ऊर्जा क्रांति का आधार बन सकता है।
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय कृषि और पर्यावरणीय तकनीक में पहले से रिसर्च कर रहा है। अगर यह प्रयास CUJ जैसे संस्थानों के साथ जुड़े, तो झारखंड के विश्वविद्यालय संयुक्त रूप से “सस्टेनेबल एनर्जी नेटवर्क” बना सकते हैं — जो न सिर्फ अकादमिक प्रोजेक्ट होगा, बल्कि सामुदायिक आंदोलन भी।
सनशाइन पर चलने वाला झारखंड”
NWIC की प्रोफेसर एमा नॉरमन, जो Native Environmental Science विभाग की हेड हैं, कहती हैं, “हम सूरज की रोशनी पर चलते हैं — और यही हमारा भविष्य है।” झारखंड भी यही सोच अपना सकता है। आज राज्य के दूर-दराज इलाकों में सड़कों और बिजली की कमी है, लेकिन सूरज सबके पास है। अगर यह सौर ऊर्जा स्थानीय कॉलेजों, पंचायतों और समुदायों के हाथ में दी जाए, तो यह न सिर्फ बिजली का विकल्प बनेगी बल्कि स्वावलंबन का प्रतीक भी।
कल्पना कीजिए — अगर खूंटी, गुमला या दुमका के कॉलेजों में सोलर ई-बाइक स्टेशन लगें और छात्र “ग्रीन कम्यूटिंग” करें, तो यह शिक्षा, पर्यावरण और नवाचार — तीनों की एक साथ पहल होगी।
परंपरा से भविष्य की ओर
बिरसा मुंडा, सिदो-कान्हू, फुलो-झानो — इन सबने अपनी ज़मीन और अपने लोगों के लिए संघर्ष किया। आज वही संघर्ष “ऊर्जा की आज़ादी” के रूप में फिर जीवित किया जा सकता है। झारखंड का आदिवासी समाज हमेशा यह साबित करता आया है कि प्रकृति से प्रेम और प्रगति की आकांक्षा एक-दूसरे के विरोध में नहीं हैं। अगर झारखंड के युवा, विश्वविद्यालय और सरकार इस सोच को अपनाएं — तो आने वाले कुछ सालों में राज्य “खनन आधारित अर्थव्यवस्था” से आगे बढ़कर “हरित अर्थव्यवस्था (Green Economy)” की मिसाल बन सकता है।
यह सिर्फ विकास का रास्ता नहीं, बल्कि झारखंड की आत्मा की पुनः खोज है, जहां जंगलों की छांव, सूरज की ऊर्जा और युवाओं के सपने — सब एक साथ चलते हैं।
Call to Action
अब ज़रूरत है कि झारखंड के विश्वविद्यालय — खासकर सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड — इस दिशा में नेतृत्व संभालें। राज्य सरकार और स्थानीय निकायों को कॉलेजों में ग्रीन इनोवेशन लैब, सोलर मोबिलिटी प्रोजेक्ट और ट्राइबल एनर्जी रिसर्च फंड जैसी पहलें शुरू करनी चाहिए। अगर अमेरिका का एक ट्राइबल कॉलेज यह कर सकता है, तो झारखंड क्यों नहीं? सवाल सिर्फ तकनीक का नहीं, भविष्य की दिशा का है।




