HAZARIBAGH
टाटीझरिया के दूधमटिया जंगल में इस साल भी अनोखा वन महोत्सव धूमधाम से मनाया गया। कार्यक्रम में ग्रामीणों ने पेड़ों पर लाल कपड़ा बांधकर उनकी रक्षा का संकल्प लिया। यह परंपरा आज छह राज्यों तक फैल चुकी है और इसका श्रेय जाता है सेवानिवृत्त शिक्षक महादेव महतो को, जिन्होंने 1999 में इस पहल की शुरुआत की थी।
महादेव महतो ने पेड़ों की अंधाधुंध कटाई को रोकने के लिए स्थानीय लोगों के साथ मिलकर “वृक्ष रक्षाबंधन” की परंपरा शुरू की थी। ग्रामीण गीतों और लोक कार्यक्रमों के जरिए लोगों को पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया जाता है। महतो की सोच थी कि जैसे बहन की रक्षा के लिए भाई राखी बांधता है, वैसे ही लोग पेड़ों की रक्षा का वचन लें।
हर साल 7 अक्टूबर को दूधमटिया जंगल में वन महोत्सव का आयोजन किया जाता है। दिन की शुरुआत वन देवी की पूजा से होती है, फिर पेड़ों पर लाल कपड़ा बांधकर उनकी रक्षा की सौगंध ली जाती है। इस आयोजन में वन समिति, वन विभाग और स्थानीय ग्रामीण मिलकर हिस्सा लेते हैं।
महतो ने जंगल की सुरक्षा को पूजा और आस्था से जोड़ा। उन्होंने “वन देवी” की पूजा की परंपरा शुरू की ताकि लोग यह महसूस करें कि जंगल सिर्फ लकड़ी या संसाधन नहीं, बल्कि आस्था का प्रतीक हैं। इस पहल का असर यह हुआ कि कभी लकड़ी तस्करों से प्रभावित यह इलाका अब अपनी हरियाली और प्राकृतिक सुंदरता के लिए पहचाना जाता है।
आज दूधमटिया वन महोत्सव न सिर्फ झारखंड बल्कि अन्य राज्यों के लिए भी प्रेरणा बन गया है। इस आयोजन से लोगों में पर्यावरण के प्रति भावनात्मक जुड़ाव पैदा हुआ है। महादेव महतो और उनके साथियों की इस छोटी-सी पहल ने साबित कर दिया कि जब समाज और संस्कृति प्रकृति के साथ जुड़ते हैं, तो जंगल भी जीवित रहते हैं।




