Prayagraj
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण और कठोर निर्णय सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि ईसाई धर्म अपनाने वाले व्यक्ति को अनुसूचित जाति (SC) के लाभ नहीं मिल सकते, क्योंकि ईसाई धर्म में जाति व्यवस्था का अस्तित्व ही नहीं है। अदालत ने कहा कि धर्मांतरण के बावजूद SC लाभ लेना “संविधान के साथ धोखाधड़ी” है और ऐसे मामलों में जिलाधिकारियों को निश्चित समयसीमा में कार्रवाई सुनिश्चित करनी होगी।
यह फैसला महराजगंज निवासी जितेंद्र साहनी की याचिका खारिज करते हुए दिया गया, जिन्होंने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। एफआईआर में उन पर हिंदू देवी-देवताओं के अपमान और सामाजिक शत्रुता फैलाने के आरोप लगे थे। कोर्ट ने टिप्पणी की कि धर्म बदलने के बाद SC/ ST एक्ट के प्रावधान लागू नहीं होते।
SC लाभ केवल तीन धर्मों तक सीमित
हाई कोर्ट ने दोहराया कि अनुसूचित जाति के लाभ केवल हिंदू, सिख और बौद्ध समुदायों को मिल सकते हैं। ईसाई धर्म अपनाने के बाद भी SC लाभ जारी रखना कानून और संविधान, दोनों की भावना के खिलाफ माना जाएगा। अदालत ने कहा कि जिस धर्म में जाति व्यवस्था ही नहीं है, उसमें SC की अवधारणा लागू ही नहीं हो सकती।
सुप्रीम कोर्ट का हवाला
न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरि की एकल पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के C. Selvarani मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि सिर्फ लाभ प्राप्त करने के लिए किया गया धर्मांतरण “संवैधानिक धोखा” है। अदालत ने स्पष्ट किया कि धर्म बदलने के बाद पुराना एससी सर्टिफिकेट मान्य नहीं रहता, चाहे वह पहले से जारी ही क्यों न हो।
गवाह की गवाही भी सामने रखी गई
गवाह लक्ष्मण विश्वकर्मा ने कोर्ट में बताया कि जितेंद्र साहनी लगातार हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ आपत्तिजनक बातें करते थे। इस बयान को भी अदालत ने रिकॉर्ड में शामिल किया और कहा कि ऐसे मामलों में कठोर जांच जरूरी है।
डीएम को सख्त निर्देश
हाई कोर्ट ने डीएम महराजगंज को आदेश दिया कि वह तीन महीने के भीतर याची के धर्म-संबंधित रिकॉर्ड की जांच करें। यदि धर्मांतरण और प्रमाण-पत्र से जुड़ी कोई धोखाधड़ी सामने आती है, तो आरोपी पर कठोर कानूनी कार्रवाई की जाए। कोर्ट ने साफ कहा कि झूठे हलफनामे और गलत दावों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
यह फैसला उन मामलों को लेकर महत्वपूर्ण मिसाल माना जा रहा है, जहां धर्म परिवर्तन के बाद भी लोग SC लाभ का दावा करते हैं।

