असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों को मिल सकेगी भारतीय नागरिकता, सुप्रीम कोर्ट ने रखीं ये शर्तें

20th October 2024

द नेशनल डेस्क

सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के मुताबिक असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों सहित अन्य अवैध अप्रवासियों को भारतीय नागरिकता मिल सकती है। देश की सर्वोच्च अदालत ने आज इस पर सुनवाई करते हुए असम के अप्रवासियों के लिए नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक को बरकरार रखा। ये धारा असम में अवैध अप्रवासियों की नागरिकता की स्थिति से संबंधित है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की बेंच ने 4:1 के बहुमत से यह फैसला सुनाया।
CJI डीवाई चंद्रचूड़ का कहना था कि 6A उन लोगों को नागरिकता प्रदान करता है जो संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत नहीं आते हैं और ठोस प्रावधानों के अंतर्गत नहीं आते हैं। दरअसल, सिटीजनशिप एक्ट की धारा 6A को 1985 में असम समझौते को आगे बढ़ाने के लिए संशोधन के बाद जोड़ा गया था। असम समझौते के तहत भारत आने वाले लोगों की नागरिकता के लिए एक विशेष प्रावधान के रूप में नागरिकता अधिनियम में धारा 6ए जोड़ी गई थी। इस धारा में कहा गया है कि जो लोग 1985 में बांग्लादेश समेत क्षेत्रों से 1 जनवरी 1966 या उसके बाद लेकिन 25 मार्च 1971 से पहले असम आए हैं और तब से वहां रह रहे हैं, उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए धारा 18 के तहत अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा। इस प्रावधान ने असम में बांग्लादेशी प्रवासियों को नागरिकता देने की अंतिम तारीख 25 मार्च 1971 तय कर दी।
केंद्र सरकार ने दिसंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामे दायर किया था और कहा था कि वो भारत में अवैध प्रवास की सीमा के बारे में सटीक डेटा नहीं दे पाएगा। क्योंकि प्रवासी चोरी-छिपे आए हैं। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने इसी आलोक में फैसले में कहा, 6ए उन लोगों को नागरिकता प्रदान करता है जो जुलाई 1949 के बाद प्रवासित हुए, लेकिन नागरिकता के लिए आवेदन नहीं कर पाये। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, 6A उन लोगों को नागरिकता प्रदान करता है जो 1 जनवरी 1966 से पहले प्रवासित हुए थे। इस प्रकार यह उन लोगों को नागरिकता प्रदान करता है जो अनुच्छेद 6 और 7 के अंतर्गत नहीं आते हैं। कोर्ट ने गुरुवार को नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6ए की वैधता बरकरार रखा और 4:1 के बहुमत से फैसला दिया।
बहस के दौरान जस्टिस सूर्यकान्त ने कहा, संविधान और उदाहरणों को पढ़ने से पता चलता है कि बंधुत्व के लिए सभी पृष्ठभूमि के लोगों से अपेक्षा की जाती है कि जियो और जीने दो. भाईचारे का चयनात्मक आवेदन संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है। ये भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि संसद बाद की नागरिकता के लिए शर्तें निर्धारित करने के लिए अलग-अलग शर्तें निर्धारित करने में सक्षम है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *