टीएमबीयू की डॉ. प्रत्याशा त्रिपाठी का मॉडल बताएगा किन परिवारों पर पड़ रही आर्थिक मार
Bhagalpur
इलाज का बढ़ता खर्च आज सिर्फ बीमारी नहीं, बल्कि परिवारों के लिए आर्थिक संकट भी बनता जा रहा है। इसी चुनौती से निपटने की दिशा में तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (टीएमबीयू) की सहायक प्राध्यापिका डॉ. प्रत्याशा त्रिपाठी ने एक नई तकनीक विकसित की है, जो इलाज पर होने वाले असहनीय खर्च की सटीक पहचान कर सकेगी।
डॉ. त्रिपाठी ने एक विशेष आउट्लायर डिटेक्शन मॉडल तैयार किया है, जो यह बताता है कि किसी परिवार की आय के मुकाबले इलाज का खर्च कब “कैटेस्ट्रॉफिक हेल्थ एक्सपेंडिचर” की स्थिति में पहुंच जाता है। यानी ऐसा खर्च, जो घर की आर्थिक स्थिति को हिला देता है।
अध्ययन के मुताबिक, देश में लगभग 49 प्रतिशत परिवारों को अस्पताल या ओपीडी इलाज के दौरान ऐसे भारी खर्च झेलने पड़ते हैं, जो उनकी आय से कहीं ज्यादा होते हैं। करीब 15 प्रतिशत परिवार इलाज के कारण गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं। बुजुर्गों वाले घरों में स्वास्थ्य खर्च घरेलू बजट को 17 से 24 प्रतिशत तक प्रभावित करता है, जबकि छोटे बच्चों का निजी अस्पताल में इलाज कई परिवारों के लिए सीधा आर्थिक झटका बन जाता है।
डॉ. त्रिपाठी के अनुसार, मौजूदा सांख्यिकीय तरीके भारी डेटा में ऐसे असामान्य खर्चों को ठीक से पहचान नहीं पाते। नतीजतन, सबसे ज्यादा प्रभावित परिवार सरकारी आंकड़ों में नजर ही नहीं आते और योजनाओं से बाहर रह जाते हैं। नया मॉडल इस कमी को दूर करता है और छोटे सैंपल में भी सटीक नतीजे देता है।
बड़े डेटा सेट में इस तकनीक की सटीकता 95 से 99 प्रतिशत तक दर्ज की गई है। 10 हजार से अधिक सिमुलेशन के जरिए इसकी विश्वसनीयता साबित हुई है। इससे स्वास्थ्य योजनाओं को सही जरूरतमंद परिवारों तक पहुंचाने में मदद मिलेगी।
इस शोध का सीधा फायदा आम लोगों को मिलेगा। आयुष्मान भारत जैसी सरकारी योजनाओं के असर का बेहतर आकलन हो सकेगा, कमजोर वर्गों को समय पर सहायता मिलेगी और बीमा कवरेज को ज्यादा प्रभावी बनाया जा सकेगा। साथ ही स्वास्थ्य बजट के उपयोग में भी पारदर्शिता और समझदारी आएगी।
हाल ही में कोलकाता में आयोजित एक राष्ट्रीय सम्मेलन में इस मॉडल को खास सराहना मिली, जहां डॉ. प्रत्याशा त्रिपाठी को पीपी तलवार अवार्ड से सम्मानित किया गया। यह उपलब्धि न सिर्फ उनके लिए, बल्कि टीएमबीयू और भागलपुर के लिए भी गर्व की बात मानी जा रही है।
डॉ. त्रिपाठी का कहना है कि इस शोध का मूल उद्देश्य यही है कि बीमारी सिर्फ स्वास्थ्य की चुनौती बने, किसी परिवार के जीवन की आर्थिक नींव न डगमगाए।

