RANCHI
झारखंड में 2024 के विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा की रणनीति तैयार करने असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा झारखंड आए थे और सह-चुनाव प्रभारी के रूप में करीब डेढ़ महीने तक सक्रिय रहे। लेकिन कड़ी मेहनत के बावजूद भाजपा राज्य की सत्ता से बाहर रह गई। अब स्थिति उलटने जा रही है—सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी आगामी असम विधानसभा चुनाव में हिमंता को जवाब देने पहुंचेंगे और आदिवासी इलाकों में जबरदस्त चुनौती पेश करेंगे।
झामुमो ने असम चुनाव को लेकर युद्ध स्तर पर तैयारी शुरू कर दी है। हाल ही में पार्टी की शीर्ष बैठक में उन क्षेत्रों की सूची साझा की गई, जहां संगठन का पारंपरिक जनाधार रहा है। चुनावी रणनीति और संभावित उम्मीदवारों पर भी चर्चा हुई।
द फॉलोअप कंक्लेव में हेमंत सोरेन पहले ही साफ कर चुके हैं कि झामुमो अगले साल असम विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारेगा। उन्होंने कहा था कि असम में झारखंड की बड़ी आबादी रहती है, खासकर टी ट्राइब्स, जिनके साथ “अन्याय और शोषण सालों से होता रहा है।” हेमंत ने कहा कि झामुमो वहां अपने लोगों की आवाज उठाएगा और अपनी राजनीतिक उपस्थिति मजबूत करेगा।
मुख्यमंत्री ने यह भी संकेत दिया कि पार्टी पश्चिम बंगाल में भी चुनाव लड़ सकती है, क्योंकि बंगाल, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ “वृहद झारखंड की सांस्कृतिक इकाई” का हिस्सा रहे हैं। ऐसे में दोनों राज्यों में आदिवासी बहुल इलाकों में पार्टी अपनी पकड़ बढ़ाने की कोशिश करेगी।
असम में झामुमो खासकर उन क्षेत्रों पर फोकस करेगा जहां टी ट्राइब्स बसते हैं—वे लोग जिन्हें अंग्रेजों के समय झारखंड से चाय बागानों में काम के लिए ले जाया गया था। हाल ही में उन्हें एसटी सूची में शामिल करने की सिफारिश के बाद समुदाय में राजनीतिक सक्रियता बढ़ी है।
झामुमो इससे पहले भी बंगाल और असम में चुनाव लड़ चुका है। लेकिन इस बार हालात अलग हैं। जानकारों का मानना है कि बिहार में इंडिया गठबंधन द्वारा झामुमो के साथ हाल में हुए व्यवहार ने पार्टी को नाराज़ किया है। ऐसे में झामुमो का दोनों राज्यों में अकेले उतरना महागठबंधन में दरकन का संकेत भी हो सकता है।
अब सवाल यह है कि झामुमो के इस कदम से कौन मजबूत होगा—पार्टी का जनाधार या विपक्षी गठबंधन की एकता—यह चुनाव के नतीजे ही तय करेंगे।

