Research Desk
अमेरिका में नवंबर का महीना आते ही थैंक्सगिविंग की तैयारियों का शोर चारों ओर भर जाता है। स्कूलों में कागज़ के टर्की सजते हैं, पिलग्रिम बसने वालों की तस्वीरें लगती हैं और रंग-बिरंगे पंखों वाली “इंडियन” पोशाकें दिखाई देती हैं। परिवार एक बड़े भोजन के लिए इकट्ठा होते हैं, और परंपरा के नाम पर यह दिन खुशी का प्रतीक माना जाता है।
लेकिन इस उत्सव के पीछे एक दर्द छिपा है—वह दर्द, जिसे अमेरिका के लाखों मूल निवासी आदिवासी (इंडिजिनस/नेेटिव अमेरिकन) आज भी अपनी रगों में महसूस करते हैं। उनके लिए थैंक्सगिविंग केवल एक जश्न नहीं, बल्कि उस इतिहास की याद है जिसमें उनकी जमीन छिनी, उनके लोग मारे गए, और उन्हें अपने ही देश में पराया बना दिया गया।
थैंक्सगिविंग की जड़ें और आदिवासियों की पहली मुलाकात
1863 में राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने थैंक्सगिविंग को राष्ट्रीय त्योहार घोषित किया। लेकिन इसकी शुरुआत उससे बहुत पहले हो चुकी थी—1621 में, जब पिलग्रिम नाविकों और वंपानोआग आदिवासियों ने एक साथ पहला भोज किया था। यह वह समय था जब इंग्लैंड से आए लोग नई दुनिया में अपनी नई बस्ती बसाने की कोशिश कर रहे थे।
लेकिन सच यह है कि इन शुरुआती वर्षों में आदिवासी समुदायों ने ही उन्हें खेती-बाड़ी, मौसम से निपटने और ज़मीन के तौर-तरीके सिखाए। इसके बावजूद अगले कुछ वर्षों में बसने वालों और आदिवासियों के बीच संघर्ष बढ़ता गया, और अंततः मूल निवासी अपनी ही भूमि से पीछे हटने को मजबूर हुए।
अमेरिका बना और आदिवासी टूटा — ज़मीन से बेदखली की लंबी कहानी
ब्रिटिश दौर (1763) — जंगल से अंदर धकेला जाना
1763 के एक शाही आदेश में कहा गया था कि कुछ इलाक़े आदिवासियों के लिए सुरक्षित रहेंगे। लेकिन असल में यह उन्हें तटीय इलाकों से और भीतर की ओर धकेलने की शुरुआत थी।
1776 — अमेरिका की आज़ादी और आदिवासी क्षेत्रों का पतन
जब 1776 में बसने वाले 13 उपनिवेशों ने ब्रिटेन से स्वतंत्रता ली, तब नए बनने वाले देश में आदिवासी समुदायों की आवाज़ लगभग गायब कर दी गई। उनकी ज़मीन को “अमेरिकी विस्तार” के नाम पर तेजी से कब्ज़ा किया गया।
1806 — असिमिलेशन यानी आदिवासी पहचान का मिटना
अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति थॉमस जेफ़रसन ने आदिवासियों को “हमारे साथ मिल जाने” और “हमारी संस्कृति अपनाने” का सुझाव दिया। यह वह शुरुआती नीति थी जिसने बाद में उनकी भाषा, पहचान और परंपराओं को खतरे में डाल दिया।
1830 — ‘इंडियन रिमूवल एक्ट’ और मौत की यात्रा: TRAIL OF TEARS
1830 में राष्ट्रपति एंड्रयू जैक्सन ने वह आदेश पर हस्ताक्षर किए जिसने आदिवासी इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया। हज़ारों परिवारों को अपनी जमीन छोड़कर मिसिसिपी नदी के पश्चिम की ओर जबरन भेजा गया। इस मजबूरन यात्रा को बाद में “ट्रेल ऑफ टीयर्स” कहा गया क्योंकि:
- करीब 60,000 आदिवासी इस सफर में धकेले गए
- 10,000 से 15,000 लोगों ने रास्ते में दम तोड़ दिया
- ठंड, भूख, बीमारी और थकावट से पूरा समुदाय तबाह हो गया
कुछ समुदाय जैसे ल्युम्बी, जिनकी नेता रेने लॉकलियर आज भी अपने जनजातीय अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं, तब से अब तक मान्यता और हक के लिए लगातार लड़ रहे हैं।
1848– कैलिफ़ोर्निया गोल्ड रश और नया विस्थापन
जब कैलिफ़ोर्निया में सोना मिला, तब लाखों लोग पश्चिम की ओर भागे—जहाँ सदियों से आदिवासी रहते आए थे। उनकी जमीन, जंगल और संसाधन तेजी से नए बसने वालों के कब्ज़े में चले गए। कई समुदायों को मिशन सिस्टम में धकेल दिया गया, जहाँ उन्हें अपनी पहचान छोड़कर ईसाई बनने पर मजबूर किया गया।
1851 — आरक्षण व्यवस्था की शुरुआत और ज़िंदगी का सिकुड़ता दायरा
1851 के “इंडियन अप्रॉप्रीएशन्स एक्ट” ने आधिकारिक रूप से ‘रिज़र्वेशन’ यानी आरक्षण-क्षेत्र बनाए:
- आदिवासी समुदायों को सीमित जगहों में बंद कर दिया गया
- उनकी पुरानी ज़मीनें “अमेरिकी सरकार की संपत्ति” घोषित की गईं
- कई परिवारों के हिस्से की जमीन पीढ़ियों में इतनी छोटी हो गई कि आज कई के पास केवल आधा एकड़ जमीन बची है
ओक्लाहोमा जैसे राज्यों में 20% लोग स्वयं को आदिवासी बताते हैं, लेकिन आज भी पहचान और अधिकार के लिए संघर्ष जारी है।
1939 — नई नीति, नए संघर्ष
1939 तक अमेरिका ने “इंडियन रीऑर्गनाइजेशन एक्ट” लागू किया, जिसका लक्ष्य था आदिवासी समुदायों को थोड़ी स्वायत्तता देना। कुछ जगहों पर जनजातीय सरकारें बनीं, पर असल नियंत्रण अब भी संघीय एजेंसियों के हाथ में रहा।
ओक्लाहोमा में आज भी हालात अजीब हैं—जहाँ:
- शहरों पर नगरपालिका सरकार का नियंत्रण
- उसी इलाके में जनजातीय पुलिस, संघीय एजेंसियाँ और स्थानीय पुलिस, तीनों सक्रिय
- अधिकार किसका है, यह रोज़ का विवाद बन जाता है
आज के आदिवासी — अस्तित्व बचाने की लड़ाई
2020 की जनगणना के मुताबिक:
- करीब 96 लाख लोग स्वयं को नेटिव अमेरिकन बताते हैं
- 2010 की तुलना में लगभग 85% की वृद्धि
- फिर भी, कई समुदाय आज भी सरकारी मान्यता से वंचित हैं
आदिवासी पहचान मापने के लिए कभी “ब्लड क्वांटम” जैसा अमानवीय तरीका अपनाया गया—जिसमें किसी व्यक्ति को उसके “इंडियन खून” के अंश से आँका जाता था। कई जनजातियाँ इसे सीधा “सांस्कृतिक नरसंहार” मानती हैं।
रेने लॉकलियर कहती हैं:
“हमारे लिए पहचान कोई खून का प्रतिशत नहीं, बल्कि हमारी परंपरा और समुदाय है।”
निष्कर्ष नहीं, एक कड़वी सच्चाई
अमेरिका के चमकदार थैंक्सगिविंग के पीछे वह इतिहास छिपा है जिसमें लाखों आदिवासियों के जीवन, संस्कृति और भूमि को मिटा दिया गया। आज भी वहाँ कई समुदाय अपनी पहचान, जमीन और सरकारी मान्यता के लिए संघर्ष में खड़े हैं। यह कहानी सिर्फ एक त्योहार की नहीं, बल्कि उस देश की है जिसने आधुनिकता की दौड़ में अपने ही मूल निवासियों को सबसे पीछे छोड़ दिया। अगर आप इस लेख को प्रकाशित करना चाहते हैं, तो यह बिल्कुल तैयार है।
(Inputs: Al Jazeera, BBC.com and Washington Post)

