SIR के दबाव में टूटते BLO, वर्कलोड पर उठ रहे सख़्त सवाल, आत्महत्या से लेकर अब मुकदमे तक की मार झेलने पर विवश

25th November 2025

CENTRAL DESK

देशभर में मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर बीएलओ—यानी बूथ लेवल ऑफिसर्स, की हालत लगातार चर्चा में है। बिहार के बाद अब उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल समेत नौ राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में यह प्रक्रिया तेज़ी से चल रही है। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि वही कर्मचारी, जो घर–घर जाकर डेटा जुटा रहे हैं, भारी दबाव, नोटिस, निलंबन, इस्तीफों और मुकदमों की मार झेल रहे हैं। चुनाव आयोग की ओर से 27 अक्टूबर को जारी आदेश के बाद 4 नवंबर से शुरू हुई इस प्रक्रिया में 321 जिलों और 843 विधानसभा क्षेत्रों में 51 करोड़ से अधिक मतदाताओं की जांच की जानी है। लगभग 5.3 लाख बीएलओ घर–घर जाकर एन्यूमरेशन फॉर्म भरवा रहे हैं।

काम का दबाव, मौतें और लगातार बढ़ती चिंताएं

बीबीसी हिंदी डॉट कॉम की रिपोर्ट के अनुसार, विभिन्न राज्यों में बीएलओ की मौतें अब राजनीतिक बहस का विषय बन चुकी हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक़ करीब 15 बीएलओ की मौतों को SIR के दबाव से जोड़कर देखा जा रहा है, जिनमें कई आत्महत्याएं बताई गई हैं। पश्चिम बंगाल, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, केरल और तमिलनाडु में ऐसी मौतों की खबरें आई हैं। हालांकि बीबीसी स्वतंत्र रूप से इन मौतों की पुष्टि नहीं कर सका है।

उत्तर प्रदेश में FIR की बौछार, 60 से अधिक कर्मचारी नामजद

नोएडा, बहराइच और बरेली में लापरवाही का आरोप लगाते हुए दर्जनों बीएलओ और अन्य कर्मचारियों पर FIR दर्ज कराई गई है।
नोएडा में 60 से अधिक बीएलओ, सहायक और सुपरवाइज़र जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 32 के तहत नामजद हैं। आरोप है कि चेतावनी और नोटिस के बावजूद कर्मचारियों ने अपने क्षेत्र में SIR का काम पूरा नहीं किया। नोएडा में चार मुकदमे दर्ज हुए—दादरी, जेवर और इकोटेक फेज–1 थानों में। बीबीसी ने FIR की कॉपी भी देखी है।

हम दबाव में टूट रहे हैं” — बीएलओ की आपबीती

बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के मुताबिक़, बीएलओ काम के बोझ को असहनीय बता रहे हैं। छुट्टियां मंज़ूर नहीं हो रहीं, स्वास्थ्य समस्याओं को भी अनदेखा किया जा रहा है।

एक महिला बीएलओ ने कहा:
मेरी तबीयत खराब है, छुट्टी मांगी थी, पर मिली नहीं। मेरी जगह दूसरी शिक्षिका को नियुक्त किया गया, फिर भी मेरे खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया गया।”

नोएडा की शिक्षिका पिंकी सिरोही ने अतिरिक्त दबाव के कारण इस्तीफा भेजा, लेकिन उसे स्वीकार नहीं किया गया। वह कहती हैं, “मैं रोज़ बूथ पर हूं, 1179 मतदाताओं में से 215 का डेटा भर चुकी हूं। लेकिन समस्या का समाधान नहीं हो रहा। कोई हमारी स्थिति समझ नहीं रहा।”

टीचर्स यूनियन का आरोप—“मानसिक शोषण हो रहा है

शिक्षक संघ ने जिलाधिकारी को चिट्ठी लिखकर कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में SIR फॉर्म वापस नहीं मिल रहे, ऐप काम नहीं कर रहा और आधी रात तक OTP भेजकर डेटा अपडेट करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है।

टीचर्स फ़ेडरेशन ऑफ इंडिया के उपाध्यक्ष मेघराज भाटी ने कहा: “रात 12 बजे तक डेटा अपलोड करना आम बात हो गई है। काम के बोझ से लोग इस्तीफा दे रहे हैं और उन्हें FIR मिल रही है—ये शिक्षक समुदाय का अपमान है।” उन्होंने बताया कि जिन शिक्षकों पर FIR हुई है, उन्हें कानूनी सहायता दी जाएगी।

प्रशासन का जवाब और चुनाव आयोग की खामोशी

नोएडा की जिलाधिकारी से संपर्क करने पर बीबीसी को कोई जवाब नहीं मिला। सिर्फ़ इतना कहा गया कि कार्रवाई चुनाव आयोग के निर्देशों पर आधारित है। उधर, चुनाव आयोग ने बीएलओ की स्थिति, मौतों या दबाव के मुद्दे पर कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है। आयोग से ईमेल पर

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