नई दिल्ली
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा की सालाना फीस बढ़ाकर 1 लाख डॉलर कर दी है। यह फैसला अमेरिका में काम कर रहे भारतीयों के लिए चिंता का सबब बन गया है। भारत के लिए यह ट्रंप का दूसरा बड़ा आर्थिक झटका है, पहले 50 प्रतिशत टैरिफ और अब यह भारी वीजा शुल्क।
भारतीयों पर असर
- अमेरिका में लगभग 3 लाख हाई-स्किल्ड भारतीय कर्मचारी हैं, ज्यादातर टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री में काम करते हैं और H-1B वीजा पर रहते हैं।
- अमेरिका हर साल 85,000 H-1B वीजा लॉटरी सिस्टम के माध्यम से जारी करता है, जिसमें करीब 70 प्रतिशत वीजा भारतीयों को मिलते हैं। इसके बाद चीन का हिस्सा मात्र 11-12 प्रतिशत है।
- पहले H-1B वीजा फीस 215 से 750 डॉलर के बीच थी, कंपनी के आकार और श्रेणी पर निर्भर। अधिकतम यह 5,000 डॉलर तक जाती थी। नई फीस इससे 20 से 100 गुना अधिक है, यानी लगभग 90 लाख रुपए तक।
- विश्लेषकों का कहना है कि इतनी उच्च वीजा फीस H-1B प्रोग्राम और भारतीय पेशेवरों के लिए गंभीर चुनौती बन सकती है।
भारतीयों के लिए महत्व
H-1B वीजा भारतीयों के लिए बहुत अहम है। अमेरिका में भारतीय-अमेरिकी आबादी का करीब चौथाई हिस्सा इसी वीजा से जुड़ा है। बड़ी आईटी कंपनियां जैसे इंफोसिस, टीसीएस और विप्रो इस वीजा का इस्तेमाल जूनियर और मध्य-स्तरीय इंजीनियरों को अमेरिका भेजने के लिए करती हैं।
अमेरिकी विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
कई अमेरिकी सांसदों और सामुदायिक नेताओं ने ट्रंप के फैसले को “विवेकहीन और हानिकारक” करार दिया है। सांसद राजा कृष्णमूर्ति का कहना है कि यह कदम कुशल कामगारों को अमेरिका से दूर करने का प्रयास है, जो लंबे समय से नवाचार और रोजगार सृजन में योगदान दे रहे हैं।




