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किसी भी समाज या व्यक्ति को सशक्त, संपन्न और वैज्ञानिक व सासंकृतिक रूप से सचेत बनाने के लिए शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण साधनों में से एक है. विशेष रूप से लड़कियों और महिलाओं के लिए शिक्षा का अलग से महत्व है. चर्चिल ने एक बार कहा था कि महिलाओं की शिक्षा और साक्षरता की दर किसी भी समाज, देश के विकास के प्राथमिक संकेतक हैं.

हम आये दिन लैंगिक समानता और लड़कियों के सशक्तिकरण की बात करते हैं. ये दोनों स्थितियां तभी संभव हैं, जब हम लड़कियों की शिक्षा पर जोर देंगे. इस राह में आने वाली मुश्किलों को समझेंगे और उनका व्यवहारिक हल ढूंढेंगे. लेकिन त्रासद ये है कि लड़कियों की शिक्षा पर सरकार, समाज और कतिपय संगठनों का फोकस तो रहता है, लेकिन इसकी मुश्किलों का सटीक और सहज निदान ढूंढने में वे बार-बार असफल साबित हुए हैं.  

लड़की की शादी भला न हुई हो, फिर भी एक युवा लड़की को बेहतर शिक्षा, रोजगार के अवसर और समान अधिकार से वंचित रखा जाता है. जबकि एक लड़के को यह सब आसानी से मिल जाता है. जहां कुछ लड़कियां बंधनों से ‘भागने’ में सफल हो जाती हैं और एक उज्ज्वल भविष्य बनाने की कोशिश करती हैं, वहीं अधिकांश अपनी बुरी किस्मत को स्वीकार कर लेती हैं. देश में आधी आबादी की शिक्षा की तस्वीर कुछ ऐसी ही है.

तैरती हुई लड़की।

यह स्थिति तब और गंभीर हो जाती है, जब लड़कियों को अक्सर एक दायित्व, एक ‘बोझ’ के रूप में देखा जाता है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह कितनी प्रतिभाशाली और महत्वाकांक्षी हैं, लड़की को अक्सर छड़ी का छोटा सिरा ही मिलता है. सूचना के इस दौर में भी शोषण और दुर्व्यवहार के डर से, कई लड़कियों को आज भी स्कूल नहीं भेजा जाता. उनको घर पर ही रखा जाता है. ताकि उनका विवाह शीघ्र हो सके.

सिक्के का दूसरा पहलू देखें तो, देश में लड़कियों की शिक्षा दर निरंतर बढ़ी है. आजादी के समय यह दर 9 प्रतिशत थी. दूसरे शब्दों में 11 लड़कियों में से सिर्फ एक लड़की या महिला साक्षर थी.  वर्तमान में यह दर 77 प्रतिशत है. लेकिन ये आंकड़ा बौना तब हो जाता है जब हम इसके मुकाबले पुरुषों की साक्षरता दर देखते हैं. जो कि 84.7 प्रतिशत है. तो ये माना जा सकता है कि हम अभी भी लड़कियों की शिक्षा के प्रति अपेक्षित गंभीर नहीं हैं.

ड्राप आउट की समस्या

इस दिशा में, लड़कियों में ड्राप आउट दर भी एक बड़ी समस्या है. जो अनुसूचित जाति और जनजाति सहित समाज के सभी वर्ग की लड़कियों पर लागू होती है. एक ताजा अध्ययन के अनुसार मध्य विद्यालय स्तर के ड्राप आउट के कुछ औसत कारण होते हैं- पढ़ाई में रुचि का नहीं होना, गरीबी, घरेलू कामों में लड़कियों की अधिक भागेदारी, कम उम्र में विवाह और कई बार लड़कियों का घरेलू व्यवसाय और कृषि वगैरह में लग जाना.

ड्राप आउट के अलावा, एक कड़वी सच्चाई ये भी है कि लड़कियों यानी आधी आबादी का एक बड़ा हिस्सा कई बार बुनियादी सुविधाओं के अभाव में भी आगे की पढ़ाई जारी नहीं रख पाता. जैसे उनकी पहुंच में विद्यालय या शिक्षण संस्थानों का अभाव, उचित वातावरण और शौचालय का न होना, आवागमन की असुविधा आदि.

शिक्षा का अधिकार और अन्य अधिनियम

यह बताना भी गैरजरूरी नहीं होगा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अनुसार शिक्षा प्रत्येक भारतीय लड़की का मौलिक अधिकार है. लगभग 48.5% महिला आबादी के साथ भारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश बन चुका है. भारत सबसे तेजी से विकसित होते देशों में से एक है. लेकिन हमारी महिला साक्षरता दर वैश्विक मानक से काफी नीचे है. भारत सरकार ने भारत में साक्षरता दर बढ़ाने के लिए आरटीई अधिनियम 2008 और एनईपी 2020 जैसे कई अधिनियम और नीतियां लागू की हैं. इसमें संदेह नहीं कि हमारी सरकारें देश के सभी हिस्सों में लड़कियों तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पहुंचाने का निरंतर प्रयास करती रहीं हैं. फिर भी मंजिल दूर है.

कुल मिलाकर ये प्रश्न पूछा जा सकता है कि जब हमारा आधा समाज, आधी आबादी भेदभाव के साये में रहेगी तो हम भारत की प्रगति और इसके विश्व गुरु बनने की आशा कैसे कर सकते हैं?  बहरहाल, उत्तर खोजने के लिए, हमें पहले उन कठिनाइयों को समझना होगा जिनका सामना जमीनी स्तर पर एक लड़की को करना पड़ता है.

यह विमर्श तब और जरूरी हो जाता है जब हम दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन चुके हैं. इसलिए आज हम शिक्षा क्षेत्र में जो भी कदम उठा रहे हैं, उसका भविष्य में अरबों भारतीयों के जीवन पर प्रभाव पड़ने वाला है

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