कान से दिल्ली तक – ‘कैटडॉग’ की निर्देशक अश्मिता गुहा नियोगी पर‘स्पॉटलाइट’, कॉस्ट्यूम, कैरेक्टर और क्रिएटिविटी पर केंद्रित रहा अक्टूबर चैप्टर, NDFF की पहल में युवा फिल्मकारों और लेखकों का शानदार संगम, अर्थपूर्ण सिनेमा के लिए नए विचारों और सहयोग का मंच बना TCOTF
NEW DELHI
‘एक फिल्मकार या कहानीकार को खामोशी और मन के अवचेतन में छिपी भावनाओं को पढ़ना आना चाहिए… जिनसे किसी का भावनात्मक संसार बनता है…।’ये कहना है अपनी डिप्लोमा फिल्म परप्रतिष्ठित कान फिल्म फेस्टिवल के ला सिनेफ़ कैटेगरी में सर्वोच्च पुरस्कार पा चुकीं फिल्मकार अश्मिता गुहा नियोगी का। अश्मिता गुहा नियोगी न्यू डेल्ही फिल्म फाउंडेशन के मासिक आयोजन ‘टॉक सिनेमा ऑन द फ़्लोर’ के अक्टूबर चैप्टर में शामिल होने के लिए दिल्ली में थीं। राजधानी में हुए इस आयोजन में फ्रांस के कान (2020) और स्पेन के सैन सेबेस्टियन फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कृत अश्मिता की शॉर्ट फिल्म ‘कैटडॉग’ की स्क्रीनिंग हुई और उन्होने दर्शकों से संवाद भी किया।
न्यू डेल्ही फिल्म फाउंडेशन (NDFF)द्वारा आयोजित मासिक कार्यक्रमटॉक सिनेमा ऑन द फ्लोर (TCOTF) का अक्टूबर चैप्टर शनिवार, 25 अक्टूबर कोश्री अरविंदो सेंटर फॉर आर्ट्स एंड कम्युनिकेशन (SACAC), भारतीय क्रिएटिव स्किल्स संस्थान (IICS) और मीडिया एंड एंटरटेनमेंट स्किल्स काउंसिल (MESC) के सहयोग से सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।दिल्ली-एनसीआर के युवाओं, फिल्मकारों, लेखकों और सिनेप्रेमियों की सक्रिय भागीदारी ने कार्यक्रम को बेहद ऊर्जा-पूर्ण बना दिया।

सिनेमा में रंग, पोशाक और किरदार पर खास नज़रिया
सिनेमा के अलग-अलग पहलुओं पर चर्चा और उस पर विचार विमर्श करने के लिए अलग-अलग खास मेहमान मौजूद थे। पहला सेक्शन था कलर, कॉस्ट्यूमएंड कैरेक्टर। इसमें डिज़ाइनर और पर्ल एकैडमी से जुड़े एसोसिएट प्रोफेसर शुभम सौरभ ने स्क्रिप्ट के परे रंग और पोशाक के ज़रिए किरदारों के चरित्र चित्रण की कला पर प्रकाश डाला। उन्होने एक दिलचस्प प्रेज़ेंटेशन के ज़रिए थ्री इडियट्स, डॉन, कभी खुशी कभी गम, कुछ-कुछ होता है, ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा समेत क्रिस्टोफर नोलन की भी कई फिल्मों के उदाहरण रखे और दर्शकों को समझाया कि किस तरह गंभीरता से बनाए सिनेमा का एक-एक फ्रेम बहुत कुछ कहता है।शुभम सौरभ ने बताया कि सिनेमा में कॉस्ट्यूम महज़ पहनावा नहीं, बल्कि एकनैरेटिव टूलहै जो चरित्र की मनोवैज्ञानिक और सामाजिक पहचान को उभारता है।
राइटर्स वर्ड: लेखकों पर टॉक सिनेमा आयोजन का नया पन्ना
न्यू डेल्ही फिल्म फाउंडेशन ने अक्टूबर चैप्टर के साथ ही अपनी नई मुहिम ‘राइटर्स वर्ड ऑथर्स ऐंगल’ की शुरुआत की है, जिसमें कहानीकारों और लेखकों को आमंत्रित कर राजधानी के क्रिएटिव कम्युनिटी बनाने वाले दर्शकों से उनका सीधा संवाद कराया जाएगा।
पहले आयोजन में पत्रकार-लेखक गोपाल शुक्ला शामिल हुए, जिनका पहला उपन्यास ‘मेटकाफ हाउस’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है और काफी सराहा जा रहा है। गोपाल शुक्लाने अपने उपन्यासमेटकाफ हाउसपर चर्चा करते हुए बताया कि कहानियों के पीछे की संवेदनाएँ कैसे साहित्य से सिनेमा तक पहुँचती हैं। इस उपन्यास के लिखने के पीछे की कहानी बताते हुए उन्होने अपने क्राइम जर्नलिज़्म के दौर के किस्से सुनाए और बताया कि किस तरह दिल्ली के पहले मर्डर की जानकारी मिलने के बाद उन्होने गहरी रिसर्च की और किस तरह कड़ियां जुड़ते-जुड़ते एक उपन्यास की शक्ल में आ गईं।
‘स्पॉटलाइट’ में अश्मिता गुहा नियोगीऔर कान चैंपियन फिल्म
‘स्पॉटलाइट’ सेगमेंट ‘टॉक सिनेमा ऑन द फ़्लोर’ का सबसे खास सेगमेंट होता है, जिसमें किसी खास उपलब्धि वाले फिल्मकार, फिल्म लेखक या किसी अन्य पहलू से जुड़ी खास शख्सियत से सीधा संवाद होता है। इस बार साल 2020 के कान फिल्म समारोह के ला सिनेफ़ कैटेगरी में पहला पुरस्कार प्राप्त करने वाली फिल्म कैटडॉगकी लेखक-निर्देशक अश्मिता गुहा नियोगी खास मेहमान थीं, जो मुंबई से आई थीं। बता दें कि इस कैटेगरी में दुनियाभर के फिल्म स्कूलों के छात्रों कीस्टूडेंट फिल्में प्रतियोगिता में शामिल होती हैं, जिनकी संख्या दो हज़ार से अधिक होती है। अश्मिता पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की छात्रा रही हैं और ‘कैटडॉग’ उनकी स्टूडेंटफिल्म थी, जिसे न सिर्फ कान बल्कि स्पेन के सैन सेबेस्टियन फिल्म समारोह में भी सर्वोच्च पुरस्कार मिला था।
इस आयोजन में अश्मिता से संवाद से पहले उनकी शॉर्ट फिल्म ‘कैटडॉग’ की स्क्रीनिंग भी हुई, जो दिल्ली में पहली स्क्रीनिंग थी।फिल्म की स्क्रीनिंग के दौरान दर्शकों की प्रतिक्रिया बेहद उत्साहपूर्ण रही। स्क्रीनिंग के बादNDFF के फाउंडर आशीष के सिंह ने उनसे बातचीत की और अश्मिता ने दर्शकों के सवालों का जवाब दिया। अपनी सफलता की यात्रा, FTII के अनुभव और पहली फीचर फिल्म पर काम करते हुए तमाम अनुभव और उनसे मिलने सबक साझा किए।
फ़िल्मकैट डॉगके बारे में बात करते हुए निर्देशकअश्मिता गुहा नियोगीने बताया कि इस फ़िल्म की जड़ें उनके बचपन और पारिवारिक रिश्तों के उन अनकहे पहलुओं में हैं, जिन्हें बच्चे बहुत अलग नज़र से देखते और महसूस करते हैं। उन्होंने कहा कि इस फ़िल्म की विशेष कथा-शैली — यथार्थ और कल्पना के मेल के साथ — बच्चों की भावनाओं, उनके टकरावों और प्रेम को समझने की कोशिश से निकली है।
अपने एफटीआईआई के अनुभवों को याद करते हुए अश्मिता ने बताया कि फिल्म स्कूल ने उनके भीतर के विजुअल लैंग्वेज को आज़ादी दी और सिनेमा बनाने में सामूहिकता की अहमियत को समझने का मौका दिया। उन्होंने यह भी कहा कि कान में मिली वैश्विक पहचान से यह विश्वास और मज़बूत हुआ कि अपनी सांस्कृतिक जड़ों और भावनात्मक सच्चाई से निकली कहानियाँ दुनिया भर के दर्शकों तक पहुँच सकती हैं। युवा फिल्ममेकरों को प्रेरित करते हुए उन्होंने कहा, “कहानी जब सच्चाई से पैदा होती है, तो वह अपने दर्शक खुद तलाश लेती है।”अश्मिता फिलहाल अपनी फीचर फिल्म की तैयारियों में जुटी हैं।
आयोजन के अंत में SACAC की ओर से निदेशक दलजीत वाधवा, शखंजीतडे और NDFF की ओर से वैभव मैत्रेय ने धन्यवाद ज्ञापन किया और अतिथियों को सम्मानित किया। शंखजीत डे ने 31 अक्टूबर को महान फिल्मकार ऋत्विक घटक की जन्म शताब्दी वर्ष के मौके पर होने वाले आयोजन के लिए सभी फिल्मप्रेमियों को आमंत्रित भी किया। इसमें घटक की पहली फिल्म की स्क्रीनिंग भी होनी है।
नई पहचान, नए संपर्क
कार्यक्रम का समापन‘चिट-चैट ओवर टी’के साथ हुआ, जो इस आयोजन का ही एक अहम हिस्सा है। इस दौरान दिल्ली के क्रिएटिव आर्ट्स से जुड़े लोग चाय के दौरान आपस में और मेहमानों से खुलकर विचार विमर्श करते हैं और नए संपर्क बनाते हैं, ताकि क्रिएटिव प्रोजेक्ट्स को एक दूसरे की मदद से आगे बढ़ाया जा सके। इसका मकसद राजधानी दिल्ली में एक नया क्रिएटिव समुदाय तैयार करना है। NDFF जल्द ही नवंबर चैप्टर की घोषणा करेगा, जिसमें मेक सिनेमा कैंपेन को लेकर भी ताज़ा गतिविधियों पर बात होगी।





