12th October 2025
RANCHI
झारखंड के आदिवासी संगठनों ने कुड़मी समाज की ओर से उन्हें अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने की मांग का जोरदार विरोध किया। इस कड़ी में आयोजित आक्रोश महारैली में आदिवासियों ने अपने पारंपरिक हथियार और लिबास पहनकर अपनी ताकत दिखाई और चेतावनी दी कि वे अपने हक और अधिकार की रक्षा के लिए पूरी तरह सजग हैं।
राज्य के विभिन्न जिलों से आए आदिवासी अपने पारंपरिक तीर-धनुष, भाला, हंसिया और दाब के साथ मौजूद थे। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि अंग्रेजों के समय कुड़मी समाज आदिवासियों से अलग हो गया था और संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर ने स्वतंत्र भारत में अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए विशेष प्रावधान किए। अब कुड़मी समाज अपनी लालसा के चलते आदिवासी हक को खतरे में डालना चाहता है, जिसे आदिवासी समुदाय कभी स्वीकार नहीं करेगा।
केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष अजय तिर्की ने कहा, “यह हमारे अस्तित्व की लड़ाई है। 2018 में भी आदिवासी समुदाय कुड़मियों को एसटी का दर्जा देने के विरोध में सड़कों पर उतरा था। आदिवासी कमजोर नहीं हैं। ट्राइबनल और कोर्ट ने भी इस मांग को रिजेक्ट किया है, लेकिन अब राजनीतिक हित के लिए इसे फिर से उठाया जा रहा है।”
महिलाओं की भागीदारी भी विशेष रही। सैकड़ों आदिवासी महिलाएं आक्रोश महारैली में शामिल हुईं और जयराम महतो पर आरोप लगाया कि ऐसे नेता कुड़मियों को भड़का रहे हैं। कुमुदनी प्रभावती ने कहा, “हमें मजबूर किया जा रहा है, लेकिन झारखंड की आदिवासी महिलाएं शेरनी हैं और अपने अधिकार नहीं छोड़ेंगी।”
आदिवासी अस्तित्व बचाओ मोर्चा और अन्य आदिवासी संगठनों ने मोरहाबादी मैदान से पद्मश्री रामदयाल मुंडा फुटबॉल स्टेडियम तक आक्रोश मार्च निकाला। इस दौरान केंद्रीय सरना समिति, आदिवासी नारी सेना, आदिवासी क्षेत्र सुरक्षा समिति, आदिवासी एकता मंच और आदिवासी अधिकार मंच सहित कई संगठन शामिल हुए। मार्च के बाद यह प्रदर्शन जनसभा में तब्दील हो गया, जिसमें आदिवासियों ने अपने हक और अधिकारों के लिए दृढ़ संकल्प व्यक्त किया।




