यह न्याय नहीं है मीलाड!

SHRINIWAS

‘आतंकी हमलों में, आरोपी के अधिकार राष्ट्रीय हित के अधीन होते हैं. कोई भी विचारधारा जो देश के खिलाफ कामों को बढ़ावा देती है, उसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

13 दिसंबर को छपी खबर

सर्वोच्च अदालत सरकार के इस तर्क से सहमत है कि यदि किसी पर ‘देशविरोधी कृत्य’ में शामिल होने का आरोप है, तो उसे कानून के समक्ष बराबरी का संविधान प्रदत्त अधिकार नहीं मिल सकता! ठीक यही तर्क कुछ दिन पहले महान्यायवादी तुषार मेहता ने दिये थे.

मेरी समझ से न्याय शास्त्र का विधान है कि अदालत की नजर में हर अभियुक्त तब तक निर्दोष होता है, जब तक उसके खिलाफ आरोप सिद्ध न हो जाए!

कमाल है कि ऐसा या कोई भी आरोप पुलिस, यानी सरकार ही लगाती है! और आँकड़े गवाह हैँ कि पुलिस लगभग आधे मामलों में कथित अपराधियों के खिलाफ आरोप साबित करने में विफल रहती है; नतीजतन अदालतें उन्हें बाइज्जत या सबूतों के अभाव में बरी कर देती हैँ! यहां तक कि सीबीआई भी अधिकतम 70  प्रतिशत मामलों में ही गिरफ्तार अभियुक्तों को सजा दिला पाती है! 2022 की एक खबर के मुताबिक- सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह कहने के कुछ दिनों बाद कि सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन (CBI) द्वारा लिये गये मामलों में “सफलता दर” कम मानी जाती है, एजेंसी ने कोर्ट को बताया कि उसने लगभग 65-70 प्रतिशत की दोषसिद्धि दर हासिल की है, और अगस्त 2022 तक इसे 75 प्रतिशत करने का प्रयास किया जाएगा.

पुलिस किसी पर हत्या और बलात्कार जैसे गंभीर आरोप भी लगाये, तो अभियुक्त दोष सिद्ध होने तक निर्दोष होगा. मगर वही पुलिस किसी पर देशद्रोह की धारा के तहत केस दर्ज कर दे, तो उसे दोष सिद्ध हुए बिना भी अनंत काल तक, बिना जमानत के जेल में सड़ाया जा सकता है!

आधिकारिक आँकड़े (2023) के मुताबिक निचली अदालतों से आधे से कुछ अधिक (54 प्रतिशत)  अभियुक्तों को ही सजा हो पाती है! 

मगर अब सिर्फ आरोप लगने पर, बिना दोष सिद्ध हुए अभियुक्त को ‘अपराधी’ मान लेने का ‘सिद्धांत’ प्रतिपादित हो गया!

बेशक महिला उत्पीड़न और एसटी/एससी के खिलाफ जातीय आधार पर अपराध के मामलों में खुद को बेगुनाह साबित करने का दायित्व अभियुक्त पर डाला गया है. मगर इस पर भी आपत्ति दर्ज रही है; इस प्रावधान को सहज न्याय के खिलाफ माना जाता है! इस प्रावधान के दुरुपयोग के आरोप- गलत या सही- भी लगते रहे हैँ! जो भी हो, वे मामले दो नागरिकों के बीच के मामले होते हैँ; देशद्रोह का आरोप सरकार लगाती है; और बहुधा सरकार राजनीतिक मकसद से भी किसी को ऐसे आरोप लगा कर परेशान करती है, कर सकती है. ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है! इमरजेंसी का दौर हमने देखा और झेला भी है. इमरजेंसी में तो खैर मौलिक अधिकार ही स्थगित कर दिये गये थे, मगर उसके पहले भी राजनीतिक विरोधियों आंदोलनकारियों को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बता कर गिरफ्तार किया जाता था. मुझ जैसे हजारों अदना कार्यकर्ताओं को ‘मीसा’ (मेंटेनेंस ऑफ इंडिया सेक्युरिटी एक्ट) के तहत गिरफ्तार किया गया था! आज इमरजेंसी नहीं है, मगर इमरजेंसी से बहुत अंतर भी नहीं है. कांग्रेसी शासन काल में बने तमाम काले कानून बरकरार हैं या उनके नाम बदल दिये गये हैँ! कांग्रेस से इनकी जितनी भी असहमति हो, पर विरोध को कुचलने के लिए कांग्रेस सरकारों के तरीकों से पूरी सहमति है! 

अब तो सरकार और प्रधानमंत्री की आलोचना करनेवालों पर भी ऐसे आरोप लगाये जा रहे हैँ! अभी शांतिवादी सोनम वांगचुक जैसे समाजकर्मी देशद्रोह के आरोप में जेल में बंद हैं, लोकगगयिका नेहा सिह राठौर पर भी देशद्रोह के आरोप में मुकदमा दर्ज हुआ है! 2019 में देशद्रोह के आरोप में रांची से गिरफ्तार स्टान स्वामी की विचाराधीन कैदी के रूप में जेल में ही मौत हो गयी थी. यह सूचना माननीय उच्च अदालत को उनकी जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान ही मिली थी! पीठ में शामिल माननीय न्यायाधीश ने इस पर अफसोस जताते हुए क्षमा याचना भी की थी! आज भी वे ‘मरणोपरांत देशद्रोह’ के आरोपी हैँ!

सच यह भी है कि जिनको ‘आतंकवादी’ या माओवादी होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया, लंबे समय तक में रहने के बाद अदालतों ने उनमें से अनेक को बेगुनाह मान कर रिहा कर दिया.

बेशक देश के खिलाफ साजिश बहुत गंभीर अपराध है. ऐसे लोगों को कठोरतम सजा मिलनी चाहिए. मगर  संदेह का पुख्ता आधार तो होना चाहिए. आखिर सबूत जुटाने के लिए कितना वक्त चाहिए, कोई सभय सीमा नहीं? महज ऐसा संदेह होने पर अनंत काल तक किसी को जेल में रखना, जमानत तक नहीं देना न्याय की अवहेलना है. नागरिक सरकार के गलत फैसलों, (कथित) झूठे आरोपों से राहत पाने की उम्मीद अदालत से करता है, लेकिन अदालत भी सरकार की भाषा बोलने लगे, तो?

सवाल है कि आखिर देशद्रोह के आरोप में महज संदेह के आधार पर कितने स्टान स्वामी विचाराधीन कैदी के रूप में जेल में कब तक सड़ते और मरते रहेंगे?

सचमुच यह ‘नया भारत’ है!

(नोट- इस आलेख में निहित विचार लेखक निजी विचार हैं। इनका उलगुलान डॉट इन से संबंध नहीं है। श्रीनिवास जेपी आंदोलन में सक्रिय रहे और सीनियर जर्रलिस्ट हैं। रांची में रहते हैं, लगभग ढई दशक प्रभात खबर से जुड़े रहे)

Ads

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *