Patna
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का रण अब गरम हो चुका है। एक ओर सभी राजनीतिक दल जनता को “साफ-सुथरी सरकार” देने के दावे कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हीं दलों के टिकट पर ‘दागी’ और ‘बाहुबली’ उम्मीदवारों की पूरी फौज उतर चुकी है। राजद हो या जदयू, लोजपा (रामविलास) हो या जन सुराज — हर पार्टी को लगता है कि अपराध का टैग अब जीत का फॉर्मूला बन चुका है।
जागरण में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार मोकामा में जन सुराज समर्थक और कई संगीन मामलों के आरोपी दुलारचंद यादव की हत्या के बाद राजनीति के अपराधीकरण पर फिर से बहस छिड़ गई है। लेकिन यह बहस कोई नई नहीं। बिहार की राजनीति में “दागी अच्छे लगते हैं” का फार्मूला हर चुनाव में आजमाया जाता है — और अब यह परंपरा बन चुकी है।
चौंकाने वाली बात यह है कि जो पार्टियाँ अपराध-मुक्त राजनीति की बातें करती हैं, वही बाहुबली नेताओं या उनके परिवारवालों को टिकट देकर मैदान में उतार रही हैं। उदाहरण के तौर पर, राजद ने जेल में बंद रीतलाल यादव को दानापुर से टिकट दिया है, तो शाहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब को रघुनाथपुर से। इसी पार्टी ने वारसलीगंज से अशोक महतो की पत्नी अनिता देवी और मोकामा से सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी को उम्मीदवार बनाया है।
जदयू ने अनंत सिंह और धूमल सिंह जैसे चेहरों पर दांव लगाया है, जबकि लोजपा (रामविलास) ने ब्रह्मपुर से हुलास पांडेय और गोविंदगंज से राजू तिवारी को मैदान में उतारा है। यानी ‘बाहुबल’ अब भी वोट बैंक की गारंटी माना जा रहा है।
ADR रिपोर्ट का खुलासा: हर तीन में एक उम्मीदवार ‘दागी’
एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) और बिहार इलेक्शन वॉच की ताज़ा रिपोर्ट ने इस खेल की परतें खोल दी हैं।
2025 के चुनाव में कुल 1314 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनमें से 423 ने खुद स्वीकार किया है कि उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। इनमें 33 पर हत्या, 86 पर हत्या की कोशिश, 42 पर महिला अपराध, और 2 पर दुष्कर्म के आरोप हैं। यानी बिहार में राजनीति और अपराध का रिश्ता अब भी उतना ही गहरा है — बस भाषा बदल गई है, नीयत नहीं।




