“सरना हमारी पहचान और आत्मा” अलग धर्म कोड की मांग को लेकर 17 फरवरी को आदिवासी समाज का दिल्ली कूच

RANCHI

सरना धर्म कोड की मांग को लेकर आदिवासी समाज ने एक बार फिर आंदोलन तेज करने का ऐलान किया है। सोमवार को रांची के सिरमटोली स्थित सरना स्थल पर विभिन्न आदिवासी संगठनों की बैठक आयोजित की गई, जिसमें सर्वसम्मति से केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना देने का निर्णय लिया गया। बैठक में तय किया गया कि 17 फरवरी को झारखंड से हजारों आदिवासी दिल्ली कूच करेंगे और सरना धर्म कोड को संवैधानिक मान्यता देने की मांग को लेकर आवाज बुलंद करेंगे।

“सरना धर्म कोड हमारी पहचान और आत्मा है”

बैठक को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि सरना धर्म कोड कोई साधारण मांग नहीं, बल्कि आदिवासी समाज की पहचान, अस्तित्व और आत्मा से जुड़ा सवाल है।

टीएसी सदस्य नारायण उरांव ने कहा कि आजादी से पहले तक आदिवासी समाज का अलग धर्म कोड था, जिसे बाद में हटा दिया गया। उन्होंने कहा कि देश के लगभग सभी समुदायों के लिए अलग-अलग धर्म कोड मौजूद हैं, लेकिन आदिवासियों को इससे वंचित रखा गया है।

उन्होंने कहा कि वर्तमान में 33 जनजातियां एकजुट होकर सरना धर्म कोड की मांग कर रही हैं। जनगणना से पहले अलग धर्म कोड दिया जाना बेहद जरूरी है, अन्यथा आदिवासियों को अन्य धर्मों में दर्ज किया जाना एक ऐतिहासिक भूल और अन्याय होगा।

“केंद्र सरकार कर रही आदिवासियों के साथ छल”

सामाजिक कार्यकर्ता शिवा कच्छप ने केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि सरना धर्म कोड के मुद्दे पर आदिवासी समाज के साथ छल किया जा रहा है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि 2026 की जनगणना में सरना धर्म के लिए अलग कॉलम नहीं जोड़ा गया, तो “कॉलम नहीं तो वोट नहीं” आंदोलन शुरू किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि धर्म कोड के अभाव में आदिवासियों को राजनीतिक रूप से कमजोर किया जा रहा है। देश की तीसरी सबसे बड़ी आबादी होने के बावजूद आदिवासी समाज आज भी अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि सरना कोड की मांग को लेकर समाज में धर्म वापसी की प्रक्रिया भी तेज हो रही है।

बैठक में कई प्रमुख चेहरे रहे मौजूद

बैठक में विश्वंभर कुमार भगत, शिवा कच्छप, संजय कुजुर, रविशन टुडु, रायमुनी किस्पोट्टा, राहुल तिर्की, सीता कच्छप सहित कई सामाजिक कार्यकर्ता, आदिवासी संगठन प्रतिनिधि और सरना धर्मावलंबी उपस्थित रहे।

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