रांची
नई दिल्ली: भारत की प्राचीन आदिवासी भाषाओं में शामिल संथाली (ओलचिकी लिपि) अब देश की सर्वोच्च संस्था – संसद – की कार्यवाहियों में भी शामिल हो गई है। देश में अंग्रेजों के खिलाफ सबसे पहले विद्रोह करने वाले बाबा तिलका मांझी, वीर सिदो-कान्हू और पंडित रघुनाथ मुर्मू जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों और समाज सुधारकों द्वारा बोली गई यह भाषा अब संसद की कार्यवाही में अनुवाद के रूप में सुनाई देगी।
बीजेपी नेता और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने इस उपलब्धि पर खुशी जताते हुए ट्वीट कर कहा, “देश की प्रमुख भाषाओं के साथ, अब संसद में चल रही कार्यवाही का अनुवाद संथाली में भी उपलब्ध होगा। यह पूरे आदिवासी समाज के लिए गर्व का विषय है।” उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को आदिवासी समाज की ओर से धन्यवाद भी दिया।
संथाली भाषा की संसद में उपस्थिति, इसे बोलने वाले झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार, छत्तीसगढ़ और असम समेत कई राज्यों के करोड़ों लोगों के लिए गौरव का क्षण है। चंपई सोरेन ने संसद में नियुक्त संथाली अनुवादकों को भी बधाई और शुभकामनाएं दीं।
उन्होंने याद दिलाया कि संथाली भाषा की मान्यता के लिए दशकों तक आंदोलन चला और अंततः अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान इसे भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया। यह कदम इस भाषा के विकास में एक अहम मोड़ साबित हुआ।
संथाली भाषा का संसद में पहुंचना न केवल भाषाई विविधता को सम्मान देने वाला कदम है, बल्कि यह आदिवासी समाज की सांस्कृतिक विरासत और पहचान को भी नई ऊर्जा देता है। यह उपलब्धि भाषा, संस्कृति और लोक परंपराओं को बचाए रखने की दिशा में एक मील का पत्थर मानी जा रही है।




