पटना
बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में एक चौंकाने वाला रुझान सामने आया है। बड़ी संख्या में गर्भवती महिलाएं प्रसव पूर्व जांच तो सरकारी अस्पतालों में करवा रही हैं, लेकिन प्रसव के लिए निजी अस्पतालों का रुख कर रही हैं। स्वास्थ्य विभाग की ताज़ा रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है।
जुलाई माह में सरकारी अस्पतालों में 99% महिलाओं ने प्रसव पूर्व जांच कराई, लेकिन उनमें से केवल 39% ने वहीं प्रसव कराया। शेष अधिकांश महिलाओं ने निजी अस्पतालों में जाकर बच्चे को जन्म दिया। जिले में इस वर्ष अप्रैल से जुलाई के बीच संस्थागत प्रसव की दर महज 30% रही, जबकि इस दौरान 95% गर्भवतियों की जांच सरकारी अस्पतालों में हुई।
हालात इतने चिंताजनक हैं कि कुछ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) ने तय लक्ष्य से अधिक जांच कीं, लेकिन वहां प्रसव न के बराबर हुए। उदाहरण के लिए, सदर अस्पताल में जुलाई में 135% महिलाओं की जांच हुई, पर मात्र 26% ही प्रसव कराए गए।
दलाल सक्रिय, अस्पतालों में भी संदिग्ध भूमिका
सूत्रों के मुताबिक, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर मेडिकल कॉलेज अस्पतालों तक निजी अस्पतालों के दलाल सक्रिय हैं, जो गर्भवतियों को बहला-फुसलाकर निजी अस्पतालों में ले जाते हैं। इन मामलों में स्वास्थ्य विभाग के कुछ कर्मियों की मिलीभगत की भी आशंका जताई जा रही है। एसकेएमसीएच जैसे बड़े अस्पतालों में ऐसे मामले पहले भी सामने आ चुके हैं, जहां गर्भवतियों को बहकाकर जबरन निजी अस्पतालों में भर्ती कराया गया और उनके परिजनों से भारी रकम वसूली गई।
संसाधनों की कमी, शाम के बाद सेवा ठप
सरकारी अस्पतालों में संसाधनों की कमी भी एक बड़ी वजह बनकर सामने आई है। खासकर शाम के बाद सदर अस्पताल में न तो पैथोलॉजी की सुविधा मिलती है और न ही आवश्यक जांच हो पाती है। सामान्य प्रसव के लिए भी जरूरी जांच और दवाएं समय पर उपलब्ध नहीं हो पातीं, जिससे डॉक्टरों को केस रेफर करना पड़ता है।
घर पर प्रसव की भी बढ़ती संख्या
जुलाई में जिले में 3% प्रसव घर पर ही हुए, जिनमें से कुछ को डॉक्टरों और नर्सों ने अंजाम दिया, जबकि अन्य दाइयों द्वारा कराए गए। आशा कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकारी अस्पतालों में देरी और अव्यवस्था के चलते गर्भवती महिलाएं निजी अस्पतालों की ओर चली जाती हैं।
स्वास्थ्य विभाग की सख्ती के निर्देश
क्षेत्रीय अपर निदेशक स्वास्थ्य डॉ. सरिता शंकर ने सभी जिलों को निर्देश दिया है कि वे संस्थागत प्रसव की दर बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाएं और गर्भवतियों को निजी अस्पतालों में भेजे जाने से रोकें।
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