New Delhi
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (27 अक्टूबर) को पश्चिम बंगाल के लिए बड़ी राहत देते हुए राज्य में 100 दिन की रोज़गार योजना (मनरेगा) को फिर से शुरू करने का आदेश बरकरार रखा। कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के 18 जून के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार की अपील खारिज करते हुए साफ कहा कि उसे निचली अदालत के आदेश में हस्तक्षेप की कोई जरूरत नहीं दिखती।
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, हाईकोर्ट ने पहले ही कहा था कि अगर राज्य में योजना के संचालन में कुछ अनियमितताएँ हुई हैं, तो भी यह पूरे कार्यक्रम को ठप करने का औचित्य नहीं बनता। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया था कि केंद्र सरकार अनियमितताओं की जांच स्वतंत्र रूप से कर सकती है, लेकिन गरीब ग्रामीण परिवारों की आजीविका को इस बहाने नहीं छीना जा सकता।
दरअसल, दिसंबर 2021 में केंद्र ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत बंगाल को फंड भेजना रोक दिया था। केंद्र ने यह कदम बड़े पैमाने पर कथित भ्रष्टाचार और फर्जी लाभार्थियों के मामलों का हवाला देकर उठाया था। इस निर्णय के बाद राज्य में 2022 से परियोजनाएँ ठप पड़ गईं।
राज्य सरकार का दावा है कि अप्रैल 2022 से अब तक केंद्र पर करीब 1.16 लाख करोड़ रुपये का बकाया है, जिसमें से केवल श्रमिक मजदूरी ही लगभग 2,744 करोड़ रुपये बताई जाती है। वहीं, केंद्र का तर्क था कि उसने यह कार्रवाई मनरेगा अधिनियम की धारा 27 के तहत की, जो फंड के दुरुपयोग पर रोक लगाने और जांच कराने की शक्ति देती है।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि उन्हें हाईकोर्ट के निष्कर्ष में कोई त्रुटि नहीं दिखती। इससे राज्य में 100 दिन की रोज़गार योजना की पुनः शुरुआत का रास्ता खुल गया है।
गौरतलब है कि मनरेगा, जिसे तत्कालीन यूपीए सरकार ने शुरू किया था, देश के हर ग्रामीण परिवार को प्रति वर्ष 100 दिन तक का सवेतन अकुशल श्रम प्रदान करने की गारंटी देता है। परियोजनाओं का निर्धारण पंचायत स्तर पर किया जाता है।




