NEW DELHI
भारत में मिडिल-क्लास रोजगार पर मंडरा रहा खतरा अब और गहरा दिख रहा है—और यह केवल आर्थिक मंदी की वजह से नहीं। मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के संस्थापक सौरभ मुखर्जी ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार और नीति-निर्माता तुरंत कदम नहीं उठाते, तो आने वाले वर्षों में व्हाइट-कॉलर सेक्टर को बड़ा झटका लग सकता है।
मुखर्जी के अनुसार, AI के तेज़ी से अपनाने, कंपनियों के ऑपरेशन में बड़े बदलाव, और ग्लोबल ट्रेड तनाव भारत के लाखों पेशेवरों की नौकरियों को खतरे में डाल रहे हैं। हाल ही में एक पॉडकास्ट में उन्होंने कहा कि IT, बैंकिंग और मीडिया जैसे सेक्टरों में पारंपरिक नौकरियां कम हो रही हैं और उनकी जगह तेजी से गिग-आधारित रोल्स ले रहे हैं।
ट्रंप टैरिफ से क्रिसमस तक 2 करोड़ जॉब्स खतरे में
मुखर्जी ने बाहरी जोखिमों में सबसे बड़ा खतरा अमेरिका-भारत व्यापार तनाव को बताया।
अगर राष्ट्रपति ट्रंप अपने टैरिफ वापस नहीं लेते, तो क्रिसमस तक करीब 2 करोड़ भारतीय नौकरियां प्रभावित हो सकती हैं।
उन्होंने कहा कि ₹2–5 लाख सालाना कमाने वाले लोगों की नौकरियों का जाना बेहद चिंताजनक होगा, खासकर उन कंपनियों के लिए जो दशकों से एक्सपोर्ट चेन का हिस्सा रही हैं।
उन्होंने उम्मीद जताई कि भारत सरकार और अमेरिकी प्रशासन जल्द ही किसी फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पर सहमत होंगे।
2–3 साल तक दिखेगा बड़ा असर
मुखर्जी का अनुमान है कि इस बदलाव के पूरी तरह असर दिखने में दो से तीन साल लग सकते हैं। इस दौरान वेतनभोगी नौकरियों का बड़ा हिस्सा खत्म हो सकता है और भारत एक फुल-स्केल गिग इकॉनमी बन सकता है।
उन्होंने कहा, “यह बदलाव सिर्फ राइड-शेयरिंग और डिलीवरी तक सीमित नहीं रहेगा—हमारे परिवार के कई लोग आने वाले समय में इसी इकोनॉमी का हिस्सा होंगे।”
AI तेजी से ले रहा है इंसानों की जगह
उन्होंने बताया कि यह उथल-पुथल मंदी का नतीजा नहीं, बल्कि कंपनियों के AI को प्राथमिकता देने का परिणाम है।
मीडिया कंपनियों से लेकर बैंकों और IT सर्विस प्रोवाइडर्स तक—हर जगह AI-आधारित वर्क पहले से तेज़ी से बढ़ रहा है। यहां तक कि विज्ञापन जगत में भी AI हावी हो चुका है।
“आज जो मॉडल्स और विजुअल्स आपको दिखते हैं, उनमें से बहुत कुछ असली नहीं, बल्कि AI-जनरेटेड है,” उन्होंने कहा।
घरेलू कर्ज का दबाव बढ़ा संकट
भारत में घरेलू कर्ज, विशेषकर होम लोन को छोड़कर, अब आय का लगभग 33–34% हो चुका है—जो वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक में से एक है।
मुखर्जी के अनुसार, इतने भारी कर्ज के बोझ में उपभोग को बढ़ावा देना आसान नहीं।
“प्रोत्साहन देने से तुरंत मांग नहीं बढ़ जाती। लोगों पर पहले से बहुत लोन का दबाव है,” उन्होंने कहा।




