स्पेशल मैरिज एक्ट में दूसरी शादी नहीं चलेगी- हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, धर्म या निजी कानून का नहीं रहेगा असर

10th November 2025

RANCHI

झारखंड हाई कोर्ट ने एक अहम और ऐतिहासिक निर्णय में कहा है कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत विवाह करने के बाद कोई व्यक्ति धार्मिक या निजी कानून का सहारा लेकर दूसरी शादी नहीं कर सकता। अदालत ने यह फैसला धनबाद के पैथॉलॉजिस्ट मोहम्मद अकील आलम के मामले में सुनाया, जिन्होंने अपनी पहली पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी की थी।

धनबाद के अकील आलम ने 4 अगस्त 2015 को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत विवाह किया था। कुछ महीनों बाद, उनकी पत्नी घर छोड़कर देवघर चली गईं। अकील ने दावा किया कि पत्नी बिना कारण चली गई और कई बार बुलाने के बावजूद वापस नहीं लौटीं। उन्होंने देवघर फैमिली कोर्ट में वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए याचिका दायर की।

इस पर पत्नी ने अदालत में बताया कि अकील पहले से शादीशुदा थे और उनकी पहली पत्नी से दो बेटियां हैं। उसने यह भी आरोप लगाया कि अकील ने उसके पिता से संपत्ति अपने नाम करने का दबाव बनाया और मना करने पर उसके साथ मारपीट की गई।

सुनवाई के दौरान अकील ने खुद स्वीकार किया कि उनकी पहली पत्नी जीवित हैं। अदालत ने पाया कि इस तथ्य को विवाह के पंजीयन के समय छिपाया गया था। देवघर फैमिली कोर्ट ने दूसरी शादी को अवैध घोषित कर दिया, जिसके खिलाफ अकील ने झारखंड हाई कोर्ट में अपील की।

जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस राजेश कुमार की खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट का फैसला बरकरार रखते हुए कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 4(ए) के अनुसार, विवाह तभी वैध है जब शादी के समय पति या पत्नी में से कोई पहले से जीवित जीवनसाथी न रखता हो।

कोर्ट ने साफ कहा — “स्पेशल मैरिज एक्ट एक ‘नॉन ऑब्स्टांटे क्लॉज’ के तहत बना कानून है, जो किसी भी निजी या धार्मिक कानून से ऊपर है।”
इस फैसले को देशभर में समान नागरिक अधिकारों के दृष्टिकोण से एक मिसाल माना जा रहा है।

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