लालदीप हमारे समय के बेहद सजग कवि है। लीक से अलग हटकर उनकी कविताएं हमेशा से ध्यान से खींचती रही है। दरअसल एक वैज्ञानिक जब साहित्यिक सदर्भों और विचारधार के साथ शब्दों को लिखता है, तो शब्द खुरदुरी जमीन पर भी संगीत की तरह ध्वनि करते हैं। इन कविताओं में इस ध्वनि को सुना जा सकता है। महसूसा जा सकता है। यहां प्रस्तुत हैं उनकी पांच ताजा कविताएं। इनमें से कविता – दुनिया के बदलने तक, साहित्यिक हलकों में पहले ही सराही जा चुकी हैं। कविताएं न हमें सोचने पर विवश करती हैं, बल्कि लालदीप के बेहतर आने वाले कल की जमानत देती हैं।
दुनिया के बदलने तक
तमाम मुश्किलों, मुसीबतों के बाद भी
माऍ अपनी कोख में
बचा लेती है
बेटियों को
ताकि जीवन बचा रहे
सभ्यता बची रहे
यह जानते हुए कि
दुनिया बहुत नहीं बदल जाएगी
उसके आने से
तब भी उम्मीद है कि
दुनिया बदलेगी
नहीं तो एक दिन
इस दुनिया को बदल देगी
तब उसके भ्रूण को
टटोला नहीं जायेगा
विभिन्न परीक्षण के दौर से
गुजरना नहीं होगा
हालाँकि वैज्ञानिक प्रयोग अब यह
साबित कर रहे हैं कि
बच्चे के जन्म के लिए
स्त्री और पुरुष का संसर्ग
ज़रूरी नहीं होगा
किसी एक के कोई भी अंग से
कोशिका लेकर
टेस्ट ट्यूब में बच्चे
बनाये जा सकते हैं
यह कैसे होगा
कब होगा
वह नहीं जानती है
बस इतना जानती है
उस दिन तक बेटियाँ
जन्मती रहनी चाहिए।
प्रेम
प्रेम बहस से परे नहीं है
आँखें मूंद कर
मान लेना
प्यार के लिए
प्यार करना
विचारों से इतर होना
प्रेम नहीं होता
यह सिर्फ भावनाओं की भी
उपज नहीं है
विचारों का युद्ध है
जिसमें द्वंद्व है
समानता, स्वतंत्रता है
रात के नौ बजे
दिन-भर का थका-हारा
वह नौजवान मज़दूर
जो जोमैटो के पैकेट का खाना
आपको पहुँचाता है
आप फ़ोन पे पर
बिल चुकता करते हैं
वह मुस्कुराता है
आप इसे प्रेम समझ
सकते हैं
फिर दूसरी डिलीवरी के लिए
वह आगे बढ़ जाता है
आप असमंजस में
प्रेम और श्रम पर
सोचने लगते हैं।
जीवन – संघर्ष
समुद्र उफनता है
क्योंकि पानी के साथ
इसमें नमक है
जो इसे बेचैन करता है
चाँद इसे अपनी ओर
खींचता है
धरती अपनी गोद में
थपकी लगाती है
इस कश्मकश में
समुद्र उफनता है
मनुष्य जिसके अंदर भी नमक है
बाँटना चाहता है
अपना नमक
अपनों के बीच
प्रेम उसे अपनी ओर खींचता है
जीवन – संघर्ष में
गुंथा मनुष्य
इसी कश्मकश में
उलझा रह जाता है
दोनों अपने अंदर के
पानी और नमक को
आजीवन बचाये रखते हैं।
दृश्य – एक
कुछ दृश्य आँखों में
गोंद की तरह
चिपके होते हैं
बिजली के सीमेंट वाले खम्भे में
चोर के अफवाह में
बँधा अधमरा आदमी
जिसकी गर्दन झुकी है
दृश्य – दो
बारिश के बाद
झरिया – धनबाद में उठते धुएँ में
आग कहाँ तक पहुँची है?
आग कैसे लगी?
किसने लगाई?
कब लगी?
लेकिन यह सच है
आग आज भी है
कोयला खदानों में
कितने डीह, पुरस माँग गए
बस नक्शे और खतियान बचे हैं
जो हाथ लगाते ही
रेत की तरह भरभराते हैं
इसके कोयले की ताप से
जगमग हैं महानगरों की रातें
जबकि अब भी
घुप्प अँधेरे में
काटता है यह शहर
अपनी कई रातें
दृश्य – तीन
‘गोफ’ के अंदर ज़मींदोज़ हुए औरतों को
ढूंढती बड़ी – बड़ी भारी मशीनें
लाशों के इंतज़ार में
कई जोड़ी आँखें
नि:शब्द, समर्पण में
झुकी हुई गर्दन
‘गोफ’ के बढ़ते दायरे में
सिमटी हुई है
कुछ लाल आँखें
तनी हुई गर्दन
‘गोफ’ – जमीन के अंदर जहाँ कोयला जल चुका है वहाँ
कभी-कभी अचानक जमीन धंस जाती है
और बड़ा सा गढ्ढा बन जाता है
जिसे गोफ कहा जाता है,
जिसमें आये दिन दुर्घटनाएँ होती रहती हैं।
इन्हीबिटर (अवरोधक)
लोहा और अन्य तत्त्व
जो अयस्क से मिलते हैं
अपने मूल रूप
अयस्क में लौटना चाहते हैं
नमी और अन्य पदार्थों से
अभिक्रिया कर अपने को
कोरोड़ (जंग) करते हैं
पेंट तथा अन्य इन्हीबिटर
इसे रोकता है
उसकी दर को
धीमी करता है
उसे लोहा बनाये रखता है
जैसे मनुष्य को
उसके
विचार, उसूल और नैतिकता
मनुष्य बनाये रखते हैं।
कवि का परिचय
जन्म तिथि – 05/01/1980
शिक्षा – एम.एससी., पीएच.डी. (रसायन शास्त्र) एवं पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ह्यूमन राइट्स
प्रकाशित रचनाएँ – ‘तीसरी दुनिया के देश और मानवाधिकार’ (पुस्तक), ‘गाँव के चौराहे पर’ (कविता संग्रह)
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविता, कहानी एवं आलेख प्रकाशित।
संपादक मंडल ‘प्रसंग’, सहायक संपादक ‘रेखांकन’।
मानवाधिकार के क्षेत्र में किये गए प्रयास एवं कार्यों के लिए
भारतीय मानवाधिकार संस्थान, नई दिल्ली से प्रोफेसर की मानद उपाधि।
अपने गाँव हेसालौंग में 31 जुलाई 2004 को जनकथाकार प्रेमचंद पुस्तकालय की स्थापना।
सम्प्रति – विज्ञान और मानवाधिकार के क्षेत्र में शोधरत एवं
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (भारतीय खनिविद्यापीठ) धनबाद में कार्यरत।
पता – ग्राम + पोस्ट – हेसालौंग, जिला – हज़ारीबाग, राज्य – झारखंड
पिन कोड – 829101
मोबाइल – 07677419434, 8789133492
Email – laldeep3@gmail.com




