Rahul Singh 09, June, 2025
झारखंड में पांच साल के शासन के बाद, जेल जाने के बाद भी हेमंत सोरेन के खिलाफ एंटी इनकंबेसी नहीं है। लोगों की आम धारणा है कि हेमंत सोरेन जेल गये नहीं, उन्हें जेल भेजा गया। तो इसलिए उनके खिलाफ सहानुभूति ही रही है और एंटी इनकंबेसी नहीं है। हेमंत तमाम विसंगतियों व दुरुहताओं के बावजूद अपने पास मांग रखने वाले वर्गाें, लोगों से रू-ब-रू होते हैं, उससे उनकी छवि एक सदाशयी राजनेता या मुख्यमंत्री की बनती है, अहंकारी राजा की नहीं।
तो यह साफ है कि हेमंत सोरेन के खिलाफ राज्य में एंटी इनकंबेंसी अबतक नहीं है। वे लोकप्रिय हैं और राज्य में कोई दूसरा राजनेता अभी उनसे आधी लोकप्रियता भी नहीं रखता। चाहे वह किसी भी दल का हो।
हेमंत सोरेन के जेल से बाहर आने के बाद बस उनकी पार्टी ने चंपाई सोरेन को पद से हटाने की जल्दबाजी कर दी, बिना बहुत मजबूत वजह के। बस यही एक बात हेमंत के खिलाफ जाती है। भाजपा यह समझती है और वह इस मुद्दे पर झामुमो व हेमंत को ट्रैप करने की कोशिश कर रही है।
उधर, चंपाई सोरेन के प्रति लोगों के मन में गुस्सा नहीं है। आज के जमाने में इतना लो-प्रोफाइल मुख्यमंत्री कहीं दिखता है क्या, जो इतना मृदुभाषी हो। ऐसे में चंपाई पर जेएमम-कांग्रेस खेमे से किया जाने वाला कोई तीखा व निचले स्तर का हमला जेएमएम-कांग्रेस के खिलाफ ही जाएगा। जैसे उन्हें गद्दार बताना, विश्वासघाती बताना आदि-आदि। भाजपा यही चाहेगी कि जेएमएम खेमे से ऐसा हो। जिस आदमी के लिए मन में गुस्सा न हो उसके खिलाफ नीतिगत, तार्कित और सम्मानपूर्ण हमले करके आप उससे पार पा सकते हैं, घटिया व बेतुके हमले करके नहीं।
याद कीजिए जब बिहार में प्रशांत किशोर नीतीश से अलग हुए तो वे उन पर शुरू में तीखा कटाक्ष करते नजर आये, लेकिन बाद में उन्होंने इसे करेक्ट किया और नीतीश के लिए सम्मानपूर्ण शब्दों का प्रयोग करते हुए उनके खिलाफ हमले शुरू किये। मुझे याद है कि एक इंटरव्यू में मैंने उन्हें यह कहते सुना कि नीतीश जी ने पिता की तरह मुझे माना। निर्विवाद रूप से नीतीश आज की तारीख में बिहार के सबसे लोकप्रिय नेता हैं। यही वजह है कि लोकसभा चुनाव के दौरान लालू परिवार की अगली पीढी ने नीतीश के कुछ फिजूल की राजनीतिक टिप्पणियों के बावजूद उनके खिलाफ सम्मानजनक हमले किये, भले वे पीएम मोदी व भाजपा को लेकर तीखे रहे हों।
इसी तरह चंपाई के खिलाफ जब गुस्सा नहीं है, नाराजगी नहीं है, थोड़ी सहानुभूति ही है तो उन पर सम्मानजनक राजनीतिक हमले ही जेएमएम-कांग्रेस को लाभ पहुंचा सकता है।
भाजपा जो सामान्य तौर पर अपने केंद्रीय कार्यालय या प्रदेश कार्यालय में नेताओं को बुलाकर अपने दल में भर्ती करती है, उसने चंपाई सोरेने के लिए मिलन समारोह जैसी जनसभा का आयोजन किया। इससे ऐसा लगता है कि भाजपा द्वारा उन्हें सोरेन परिवार व जेएमएम के सामने एक आईने के रूप में पेश करने की कोशिश की जा रही है।
भारतीय राजनीति में लोकप्रिय व विराट नेताओं के भी चुनाव हार जाने के अनेकों किस्से हैं। जब नीतीश कुमार ने बिहार में लालू युग का अंत किया था उस समय भी लालू प्रसाद यादव ही बिहार के सबसे लोकप्रिय नेता थे। नीतीश की लोकप्रियता 2007-2008 के बाद तेजी से बढनी शुरू हुई और 2010 तक वे बिहार के सबसे लोकप्रिय राजनेता हो गये। इस इलेक्शन प्वाइंट पर ब्रांड नीतीश ब्रांड लालू को ओवरलेप कर गया।
आज के दौर में झारखंड में तीन ही नाम की चर्चा है – हेमंत सोरेन, चंपाई सोरेन और जयराम महतो। ऐसे में भाजपा अपनी लड़ाई को सामूहिकता का पुट दे रही है। चंपाई अगर खुद के बेटे का कैरियर सेट करने की कोशिश करने वाले नेता के रूप में दिखेंगे, तो यह झामुमो के लिए मुफ़ीद हो सकता है। इसलिए झारखंड की लड़ाई रोचक है। कई बार बहुत ज्यादा बोलने वाले लोगों की जगहों कम बोलने वाले व खामोश रहने वाले लोगों पर अधिक गौर करने की जरूरत होती है। राजनीति में भी यह बात लागू होती है।