New Delhi
दिल्ली की हवा इन दिनों जानलेवा हो चुकी है। राजधानी का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) लगातार ‘गंभीर’ श्रेणी में बना हुआ है — औसतन 377 से ऊपर, जबकि आनंद विहार, आरके पुरम, चांदनी चौक और रोहिणी जैसे इलाकों में यह 400 पार कर चुका है। यानी, वहां की हवा में हर सांस ज़हर घोल रही है।
ऐसे हालात में देश के वरिष्ठ डॉक्टरों ने बेहद सख्त चेतावनी दी है। एम्स (AIIMS) के पूर्व पल्मोनोलॉजिस्ट और फेफड़ा रोग विशेषज्ञों का कहना है कि अगर संभव हो, तो लोग अगले छह से आठ हफ्तों के लिए दिल्ली छोड़ दें, खासकर वे जिन्हें हृदय, फेफड़ों या सांस से जुड़ी पुरानी बीमारियां हैं। डॉक्टरों का कहना है कि नवंबर और दिसंबर प्रदूषण के लिहाज से सबसे खतरनाक महीने होते हैं और इस दौरान ऐसे मरीजों की स्थिति तेजी से बिगड़ सकती है।
बच्चों के फेफड़ों पर सबसे बड़ा असर
AIIMS की एक स्टडी में पाया गया है कि दिल्ली जैसे प्रदूषित शहरों में रहने वाले बच्चों के फेफड़े सामान्य गति से विकसित नहीं हो पाते। पहले जहां फेफड़ों की बीमारी का प्रमुख कारण धूम्रपान था, अब लगभग आधे से ज्यादा मामले हवा के प्रदूषण से जुड़ चुके हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि पहले फेफड़ों के कैंसर के 80% मरीज स्मोकर होते थे, लेकिन अब लगभग 40% ऐसे मरीज हैं जिन्होंने कभी सिगरेट नहीं पी। इसका मतलब साफ है — प्रदूषण अब कैंसर की सबसे बड़ी वजह बन रहा है, और यह खतरा युवाओं में भी तेजी से बढ़ रहा है।
सिर्फ फेफड़े नहीं, पूरा शरीर है निशाने पर
डॉक्टरों के मुताबिक, जहरीली हवा का असर दिल, दिमाग, किडनी, हार्मोन सिस्टम और इम्यूनिटी पर भी होता है। लंबे समय तक इस प्रदूषण में सांस लेने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता घटती है, जिससे कई गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
डॉक्टरों के अनुसार, एक अच्छा एयर प्यूरीफायर कमरे की हवा को कुछ हद तक साफ कर सकता है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि कमरा पूरी तरह बंद हो और मशीन लगातार चालू रहे। हालांकि, WHO का मानना है कि यह स्थायी समाधान नहीं, फिर भी दिल और फेफड़े के मरीजों के लिए घर के भीतर सीमित राहत दे सकता है।
क्या करें, क्या न करें
दिल्ली फिलहाल एक गैस चैंबर में तब्दील हो चुकी है। विशेषज्ञ सलाह दे रहे हैं कि अनावश्यक बाहर निकलने से बचें, N-95 मास्क का उपयोग करें, बच्चों और बुजुर्गों को प्रदूषण से बचाने की हरसंभव कोशिश करें। और अगर आपके पास विकल्प है — तो कम से कम दिसंबर के मध्य तक किसी कम प्रदूषित इलाके में चले जाएं, क्योंकि डॉक्टरों के शब्दों में — “स्वास्थ्य से बड़ा कोई विकल्प नहीं।”




