RANCHI
सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार को बड़ा और सख्त निर्देश देते हुए कहा है कि सारंडा वन क्षेत्र को अधिकतम तीन महीने के भीतर वन्यजीव अभयारण्य के रूप में अधिसूचित किया जाए। चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान साफ कहा कि सरकार इस प्रक्रिया में वन अधिकार अधिनियम के तहत आदिवासियों और वनवासियों के अधिकारों को पूरी तरह सुरक्षित रखे। साथ ही स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र और रेललाइन जैसी जनसुविधाओं की निरंतरता भी सुनिश्चित की जाए।
अदालत ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि अभयारण्य घोषित क्षेत्र में किसी भी परिस्थिति में खनन की अनुमति नहीं दी जाएगी।
राज्य सरकार की दलील खारिज, पूरा 31,468.25 हेक्टेयर क्षेत्र घोषित करने का निर्देश
शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार द्वारा अभयारण्य क्षेत्र को घटाकर 24,941 हेक्टेयर करने के अनुरोध को ठुकरा दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सरकार को वही पूर्व निर्धारित 31,468.25 हेक्टेयर क्षेत्र को ही अभयारण्य घोषित करना होगा।
पिछली सुनवाई में कोर्ट द्वारा नियुक्त न्याय मित्र, वरिष्ठ अधिवक्ता के. परमेश्वर ने सरकार के रुख पर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था कि पहले सरकार ने 57,519.41 हेक्टेयर क्षेत्र प्रस्तावित किया, फिर उसे 31,468.25 हेक्टेयर किया गया, और अब उसे और घटाने की कोशिश हो रही है।
न्याय मित्र ने यह भी इंगित किया था कि राज्य सरकार उन 126 खनन प्रभागों (कम्पार्टमेंट्स) को अभयारण्य क्षेत्र से बाहर करना चाहती है, जहां पहले खनन न होने का दावा किया गया था।
कोर्ट की दो-टूक: 126 कम्पार्टमेंट में खनन की अनुमति नहीं
पिछली सुनवाई के दौरान सेल ने दलील दी थी कि प्रस्तावित अभयारण्य क्षेत्र में उसकी कुछ खदानें आवंटित हैं, लेकिन अभी संचालन शुरू नहीं हुआ है। इस पर चीफ जस्टिस ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा था कि जहां अभयारण्य होगा, वहां 126 कम्पार्टमेंट में किसी भी तरह की खनन गतिविधि नहीं मानी जाएगी।
कोर्ट ने यह भी कहा कि कानून की नजर में भारत सरकार और दूसरी खनन एजेंसियों के लिए अलग नियम नहीं हो सकते।




