RANCHI
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने मौजूदा राज्य सरकार पर आदिवासी समाज से जुड़े मुद्दों की अनदेखी का गंभीर आरोप लगाया है। सोशल मीडिया पर साझा एक विस्तृत पोस्ट में उन्होंने कहा कि अदालत के आदेश के बावजूद गठबंधन सरकार पेसा अधिनियम लागू करने से बच रही है, जबकि यह कानून आदिवासी स्वशासन और पारंपरिक ग्राम सभाओं को सशक्त बनाने की दिशा में बेहद अहम है।
चंपाई सोरेन ने लिखा कि मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने पेसा अधिनियम की समीक्षा कर ग्राम सभाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए विशेष प्रावधान जोड़े थे। इसके तहत सभी बालू घाटों और लघु खनिजों के खनन अधिकार ग्राम सभाओं को देने का प्रस्ताव भी तैयार किया गया था, जिसे विधि विभाग से स्वीकृति मिल चुकी थी। “लेकिन डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी सरकार ने इसे लागू नहीं किया,” उन्होंने लिखा।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि पेसा लागू होने के बाद आदिवासी बहुल इलाकों में किसी भी सभा या धार्मिक स्थल के निर्माण से पहले ग्राम सभा और पारंपरिक ग्राम प्रधानों (पाहन, मांझी, परगना, मानकी, मुंडा, पड़हा राजा आदि) की अनुमति जरूरी होगी। उनके अनुसार इससे न केवल पारंपरिक शासन व्यवस्था मजबूत होगी, बल्कि धर्मांतरण पर भी रोक लगेगी।
उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि उसे यह व्यवस्था मंजूर नहीं है क्योंकि “कुछ लोगों को रूढ़िवादी परंपरा मानने वाले आदिवासियों के हाथों में शक्ति और अधिकार देना पसंद नहीं।”
चंपाई सोरेन ने आगे लिखा कि आदिवासी संस्कृति सिर्फ पूजा-पद्धति नहीं, बल्कि एक संपूर्ण जीवन शैली है, जो जन्म से लेकर मृत्यु तक मांझी-परगना और पाहन जैसी पारंपरिक संस्थाओं से जुड़ी होती है। उन्होंने सवाल उठाया—“धर्मांतरण के बाद जब लोग चर्च में जाते हैं, तो वहां ‘मरांग बुरू’ या ‘सिंग बोंगा’ की पूजा होती है क्या?”
पूर्व सीएम ने चेतावनी दी कि अगर धर्मांतरण को नहीं रोका गया तो “हमारे सरना स्थल, जाहेरस्थान और देशाउली जैसे पूजास्थल भविष्य में उजड़ जाएंगे और हमारी संस्कृति मिट जाएगी।”
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि हाल में सरकार ने पश्चिमी सिंहभूम जिले में आदिवासियों की पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था में हस्तक्षेप करने की कोशिश की, जिसके विरोध में “मानकी मुंडा संघ” ने चाईबासा में विशाल धरना-प्रदर्शन किया, लेकिन सरकार ने कोई संज्ञान नहीं लिया।
अपनी सरकार की पहल का जिक्र करते हुए चंपाई सोरेन ने कहा कि उनके कार्यकाल में सरकारी स्कूलों में स्थानीय भाषाओं में शिक्षा शुरू करने की प्रक्रिया चालू की गई थी, लेकिन मौजूदा सरकार ने उसे रोक दिया। उनका कहना है कि अगर आदिवासी समाज अपनी भाषा, इतिहास और परंपरा पर गर्व करना शुरू कर दे, तो धर्मांतरण अपने आप रुक जाएगा।
चंपाई ने यह भी कहा कि हाल के दिनों में आदिवासी क्षेत्रों में शराब की दुकानों के बढ़ते खुलने से यह साफ है कि सरकार का “लक्ष्य समाज को कमजोर करना” है। उन्होंने कहा, “हमारे युवाओं को नशे में झोंक कर ये लोग किसका भला करना चाहते हैं? सोचिए और समझिए।”
पूर्व मुख्यमंत्री की यह पोस्ट न केवल मौजूदा सरकार पर राजनीतिक हमला मानी जा रही है, बल्कि आदिवासी अस्मिता और पेसा कानून के क्रियान्वयन पर नई बहस को जन्म दे रही है।




