कैग का बड़ा खुलासा: ओडिशा में आदिवासी फंड से इंजीनियरों ने उड़ाए करोड़ों, बीमा से लेकर मोबाइल रिचार्ज तक में खर्च

25th September 2025



नई दिल्ली:
ओडिशा के आदिवासी इलाकों के विकास के लिए जारी की गई सरकारी रकम का बड़ा हिस्सा कैसे निजी खर्चों में लुटा दिया गया — इसका चौंकाने वाला खुलासा देश के शीर्ष लेखा निगरानी निकाय कैग (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) की ताज़ा रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य की इंटीग्रेटेड ट्राइबल डेवलपमेंट एजेंसियों (आईटीडीए) से जुड़े इंजीनियरों ने ट्राइबल फंड से लगभग 149 करोड़ रुपये का निजी इस्तेमाल किया, जिनमें बीमा प्रीमियम से लेकर मोबाइल रिचार्ज तक के भुगतान शामिल हैं।
यह रिपोर्ट बुधवार को ओडिशा विधानसभा में पेश की गई और इसमें 2018-19 से लेकर 2022-23 के बीच के पांच वर्षों का लेखा-जोखा दिया गया है। रिपोर्ट में राज्य की 11 आईटीडीए एजेंसियों का ऑडिट किया गया, जो अनुसूचित जनजातियों के लिए कल्याणकारी योजनाएं संचालित करती हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, इन इंजीनियरों—विशेष रूप से जूनियर (JE) और असिस्टेंट इंजीनियरों (AE)—ने ट्राइबल विकास के लिए आवंटित फंड को अपने निजी बैंक खातों में डलवाया और वहां से एटीएम, यूपीआई और चेक ट्रांजेक्शन के ज़रिए करोड़ों की निकासी की। इसमें से कई भुगतान बीमा प्रीमियम, मोबाइल रिचार्ज, और अन्य निजी खर्चों में किए गए।
कैग ने साफ कहा कि यह पूरा लेनदेन ओडिशा लोक निर्माण विभाग (OPWD) कोड का उल्लंघन है, जिसके अनुसार सरकारी राशि सिर्फ आईटीडीए के आधिकारिक खातों से ही खर्च की जा सकती है। लेकिन इन एजेंसियों में भुगतान सीधे जेई और एई के खातों में ट्रांसफर किया गया, जो आंतरिक वित्तीय नियंत्रण की गंभीर विफलता को दर्शाता है।
कैग की रिपोर्ट में बताया गया कि राज्य सरकार ने ऑडिट की गई अवधि में ट्राइबल योजनाओं के लिए 1,709.47 करोड़ रुपये जारी किए थे, लेकिन आईटीडीए सिर्फ 1,190.44 करोड़ रुपये यानी लगभग 70 प्रतिशत ही खर्च कर सकी। जो खर्च हुए, उनमें से भी भारी गड़बड़ियां सामने आईं।
वाउचर और बिलों की स्थिति भी बेहद लापरवाही भरी पाई गई। 20.71 करोड़ रुपये के खर्च में से केवल 17.33 करोड़ के ही दस्तावेज़ मौजूद थे। सैंपल में देखे गए 325 कार्यों में से 3.23 करोड़ रुपये के बिल ही नहीं मिले। वहीं 544 कार्यों के 2,476 बिलों में तिथियों का अभाव, डुप्लिकेट एंट्री, फर्जी संस्थाएं और गलत GST नंबर पाए गए।
रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि कुछ एजेंसियों ने बिना निविदा प्रक्रिया के सहकारी समितियों से 54.25 करोड़ रुपये की सामग्री खरीद डाली। जबकि सरकार पहले ही जून 2025 में यह विशेषाधिकार समाप्त कर चुकी थी। इसके बावजूद बिना टेंडर, रिपीट ऑर्डर के ज़रिए लाखों का सामान खरीदा गया।
एक गंभीर मामला परलाखेमुंडी आईटीडीए का है, जहां परियोजना प्रशासक (PA) ने अनुमोदित 73.60 लाख की सीमा को पार कर सीधे 3.74 करोड़ रुपये के उपकरण और वस्त्र खरीद डाले। इनमें 2.09 करोड़ रुपये का ऑर्डर पुराने सप्लायर्स को बिना टेंडर दिए दोबारा जारी किया गया।
कैग ने इस पूरे मामले में अनियमितताओं, वित्तीय अनुशासन के उल्लंघन और संभावित भ्रष्टाचार को देखते हुए राज्य के अनुसूचित जाति/जनजाति विभाग को निर्देश दिया है कि वह सभी लेनदेन की गहन जांच कराए, ज़िम्मेदार अधिकारियों की पहचान कर कार्रवाई सुनिश्चित करे और आगे से इंजीनियरों द्वारा खातों के संचालन पर सख्ती से रोक लगाए।
रिपोर्ट में यह भी याद दिलाया गया है कि भारत सरकार ने अनुसूचित क्षेत्रों के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए पांचवीं पंचवर्षीय योजना (1974-79) के दौरान आईटीडीए की स्थापना की थी। ओडिशा में 22 प्रतिशत से अधिक आबादी जनजातीय है और यहां 22 आईटीडीए एजेंसियां कार्यरत हैं, जिन पर ट्राइबल समाज की तरक्की की जिम्मेदारी है। लेकिन कैग की रिपोर्ट बताती है कि जिनके हाथों में विकास की कमान होनी चाहिए थी, उन्होंने उसे अपने फायदे का ज़रिया बना लिया।

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