गंगटोक
बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 (BT Act) को रद्द करने और महाबोधि महाविहार का प्रबंधन पूरी तरह बौद्ध समुदाय को सौंपने की मांग को लेकर रविवार को सिक्किम की राजधानी गंगटोक में बड़ी रैली निकाली गई। अखिल भारतीय बौद्ध मंच (AIBF) के आह्वान पर हुई इस रैली में सैकड़ों भिक्षु, स्थानीय नागरिक और कई सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि जिस स्थल पर भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था, वही स्थल आज भी 1949 के कानून के तहत एक ऐसी समिति के अधीन है, जिसमें बौद्धों की हिस्सेदारी बराबर होते हुए भी जिला मजिस्ट्रेट—जो गैर-बौद्ध होता है—अध्यक्ष पद पर रहता है।
आंदोलनकारी इसे धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार (संविधान के अनुच्छेद 25 से 28) का उल्लंघन बताते हैं। उनका कहना है कि बौद्धों को उनके सबसे पवित्र स्थल से वंचित रखना अब न्यायोचित नहीं है।
AIBF के महासचिव आकाश लामा ने रैली में कहा कि बोधगया विश्वभर के बौद्धों के लिए आस्था का केंद्र है, लेकिन 1949 का अधिनियम उन्हें अल्पमत में रखता है। उन्होंने बताया कि आंदोलन के तहत अब तक भूख हड़ताल, हस्ताक्षर अभियान और कानूनी लड़ाई जारी है। 10 अगस्त को नागपुर से राष्ट्रव्यापी मशाल यात्रा भी निकाली गई और एक लाख से ज्यादा लोगों ने हस्ताक्षर कर समर्थन दिया है। सुप्रीम कोर्ट में भी इस मामले से जुड़ी सुनवाई 30 अक्टूबर को तय है।
सिक्किम की विशेष बौद्ध विरासत को देखते हुए यहां की रैली को खास महत्व मिला। सिक्किम भूटिया लेप्चा सर्वोच्च समिति (SIBLAC) के सलाहकार एसडी शेरिंग लेप्चा ने कहा कि बौद्ध समुदाय का यह संवैधानिक हक है कि वह अपने पवित्र स्थल का प्रबंधन करे। यह प्रदर्शन बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, झारखंड, पश्चिम बंगाल और लद्दाख समेत कई राज्यों में चल रहे राष्ट्रव्यापी अभियान का हिस्सा है।




