New Delhi
अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार के विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्तक़ी शनिवार को उत्तर प्रदेश के देवबंद पहुंचे। छह दिवसीय भारत दौरे पर आए मुत्तक़ी इससे पहले विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भी मुलाक़ात कर चुके हैं। यह पहली बार है जब तालिबान शासन का कोई शीर्ष मंत्री भारत आया है। हालांकि तालिबान को सत्ता में आए चार साल हो चुके हैं, लेकिन भारत ने अब तक अफ़ग़ानिस्तान की मौजूदा सरकार को औपचारिक मान्यता नहीं दी है।
देवबंद में नमाज़ और मुलाक़ातें
बीबीसी के रिपोर्ट के मुताबिक मुत्तक़ी ने देवबंद स्थित प्रसिद्ध इस्लामी शिक्षण संस्था दारुल उलूम में नमाज़ अदा की और स्थानीय उलेमा से मुलाक़ात की। उन्होंने कहा, “देवबंद आकर बहुत अच्छा लगा। यहां के लोगों ने जिस तरह से मेरा इस्तक़बाल किया, मैं उनका शुक्रगुज़ार हूं। भारत और अफ़ग़ानिस्तान के रिश्ते मुझे उज्ज्वल और मज़बूत नज़र आ रहे हैं।” इस दौरान उन्होंने भारत-अफ़ग़ानिस्तान के साझा सांस्कृतिक और धार्मिक संबंधों की भी चर्चा की।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद की प्रतिक्रिया
मौलाना अरशद मदनी, प्रमुख—जमीयत उलेमा-ए-हिंद, ने मुत्तक़ी की यात्रा को ऐतिहासिक बताया। उन्होंने कहा,
“जिस तरह भारत ने ब्रिटिश हुकूमत से आज़ादी पाई, उसी तरह अफ़ग़ानिस्तान ने भी रूस और अमेरिका जैसी ताक़तों से संघर्ष कर अपनी पहचान बनाई है। यही संघर्ष की भावना इन्हें देवबंद तक लेकर आई है।”
देवबंद से तालिबान का संबंध
सहारनपुर ज़िले का दारुल उलूम देवबंद विश्व इस्लामी शिक्षा का एक अहम केंद्र है। इसकी विचारधारा ने दक्षिण एशिया के कई इस्लामी संस्थानों को प्रभावित किया है — जिनमें पाकिस्तान का दारुल उलूम हक्कानिया भी शामिल है, जहां तालिबान के कई वरिष्ठ नेता शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं।
हक्कानिया को अक्सर “तालिबान की नर्सरी” कहा जाता है और इसका पाठ्यक्रम देवबंद की तर्ज़ पर तैयार किया गया था।
मुत्तक़ी का उद्देश्य
मुत्तक़ी ने देवबंद यात्रा के उद्देश्य पर कहा,
“देवबंद इस्लामी दुनिया का बड़ा केंद्र है और अफ़ग़ानिस्तान से इसका पुराना रिश्ता है। जैसे हमारे छात्र भारत में साइंस और इंजीनियरिंग पढ़ने आते हैं, वैसे ही धार्मिक शिक्षा के लिए देवबंद आते हैं।”
दारुल उलूम के मीडिया प्रभारी अशरफ़ उस्मानी ने बताया,
“मुत्तक़ी साहब हमारे मेहमान हैं। उनके स्वागत और भ्रमण की पूरी व्यवस्था की गई है। दारुल उलूम में मेहमान आते रहते हैं, और हम सबका स्वागत समान रूप से करते हैं।”
भारत-अफ़ग़ान रिश्तों की नई परत
मुत्तक़ी का यह दौरा सिर्फ़ धार्मिक या प्रतीकात्मक नहीं माना जा रहा। विशेषज्ञ इसे भारत और तालिबान के बीच संभावित संवाद के नए संकेत के रूप में देख रहे हैं। हालांकि दोनों देशों के बीच आधिकारिक मान्यता का सवाल अभी भी अनुत्तरित है, मगर मुत्तक़ी की देवबंद यात्रा ने उस ऐतिहासिक रिश्ते को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है, जिसने कभी दक्षिण एशिया की धार्मिक और राजनीतिक धारा को आकार दिया था।




