RANCHI
16 सितंबर 2025 को खूंटी जिले के तोरपा प्रखंड के कोचा खास गांव ने झारखंड की विकास यात्रा में एक नई कहानी जोड़ी। यहां “समुदाय आधारित क्लाइमेट स्मार्ट गांव” की शुरुआत हुई। एक ऐसी पहल जो पर्यावरण संरक्षण, सतत आजीविका और स्थानीय भागीदारी के संतुलन को दर्शाती है। यह न केवल जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग की चुनौतियों का जवाब है, बल्कि ग्रामीण आत्मनिर्भरता की दिशा में एक व्यावहारिक कदम भी है।
इस अवसर पर ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री दीपिका पांडे सिंह ने इसे “स्थानीय समाधान की वैश्विक मिसाल” बताया। उनके अनुसार, “क्लाइमेट स्मार्ट गांव सिर्फ परियोजना नहीं, बल्कि एक सोच है, ऐसी सोच जिसमें गांव का हर व्यक्ति परिवर्तन का हिस्सा बनता है। यह पहल पर्यावरण की रक्षा करते हुए गांवों को आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत बनाती है।” गौरतलब है कि झारखंड सरकार ने 100 गांवों को एग्री स्मार्ट विलेज बनाने का लक्ष्य तय किया है। इन गांवों में आधारभूत संरचना का विकास होगा। यहां सभी सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जाएगा। मकसद यह है कि गांव के विकास से ही राज्य की सूरत बदली जा सकती है।
बहरहाल, मंत्री ने कहा कि झारखंड की महिलाएं आज समूह बनाकर संगठित हो रही हैं और अपनी आजीविका को सशक्त बना रही हैं। हमारा लक्ष्य है कि हर गांव आत्मनिर्भर बने, हर परिवार सुरक्षित रहे और हर महिला सशक्त हो। क्लाइमेट स्मार्ट गांव इसी दिशा में निर्णायक कदम हैं।”
गांवों में हरित ऊर्जा की नई परिभाषा
कोचा खास की पहल उस सोच का विस्तार है जो झारखंड के कई जिलों में पिछले कुछ वर्षों से आकार ले रही है। गुमला जिले के सेहल और चट्टी गांव में जुलाई 2024 में Schneider Electric India Foundation और PRADAN संस्था ने दो क्लाइमेट स्मार्ट गांवों का उद्घाटन किया था। वहां 40 kW और 45 kW क्षमता वाले सोलर मिनी-ग्रिड सिस्टम लगाए गए, जो सिंचाई, कृषि प्रसंस्करण और घरेलू जरूरतों के लिए स्वच्छ ऊर्जा उपलब्ध करा रहे हैं।
इन गांवों में अब 110 से अधिक परिवार सौर ऊर्जा से संचालित जीवन जी रहे हैं। खेती, प्रसंस्करण और छोटे उद्यमों के लिए ऊर्जा की निर्भरता पारंपरिक बिजली पर नहीं, बल्कि स्थानीय स्तर पर उत्पन्न सौर ऊर्जा पर है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में लागत घटी है, आमदनी बढ़ी है और कार्बन उत्सर्जन में हर साल लगभग 60,000 किलो की कमी आई है।
यह मॉडल दिखाता है कि जब तकनीक गांव के हाथों में होती है, तो विकास स्थायी बनता है। यहां गांव के लोग न केवल सौर प्रणाली के उपयोगकर्ता हैं, बल्कि ऊर्जा प्रबंधन और रखरखाव के साझेदार भी हैं। इससे सामुदायिक स्वामित्व और आत्मनिर्भरता की भावना मजबूत हुई है।
इस मौके पर श्नाइडर इलेक्ट्रिक इंडिया के ग्रेटर इंडिया ज़ोन प्रेसिडेंट और एमडी एवं सीईओ, दीपक शर्मा ने कहा, “श्नाइडर इलेक्ट्रिक 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने में भारत के ग्रामीण विकास की महत्वपूर्ण भूमिका में विश्वास करता है। देश की विकास यात्रा में ग्रामीण भारत को अग्रणी स्थान दिलाने में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, लेकिन स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, खाद्य सुरक्षा, आजीविका के अवसर, सुरक्षा और स्वच्छ जल जैसी आवश्यक सेवाओं तक त्वरित पहुँच वास्तविक प्रभाव पैदा करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
ऊर्जा से आजीविका तक- नवाचार की मिसाल
बहरहाल, Schneider Electric और प्रदान की इस साझेदारी में आधुनिक IoT-सक्षम स्मार्ट पावर सिस्टम लगाए गए हैं, जो सौर पैनलों की 100 प्रतिशत क्षमता का उपयोग सुनिश्चित करते हैं। इन प्रणालियों से अब गांवों में सिंचाई पंप, तेल और चावल निकालने की मशीनें, मसाला पीसने की चक्की, इलेक्ट्रिक रिक्शा और स्ट्रीट लाइटिंग जैसी सुविधाएं सौर ऊर्जा से चल रही हैं।
कंपनी ने झारखंड में अब तक 800 से अधिक सौर सिंचाई पंप स्थापित किए हैं, जिससे लगभग 16,000 महिला किसान लाभान्वित हुई हैं। यह आँकड़ा केवल तकनीकी उपलब्धि नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन की कहानी भी कहता है। जिन महिलाओं ने पहले खेती या घरेलू कार्यों में सीमित भूमिका निभाई थी, वे अब सौर ऊर्जा आधारित सूक्ष्म उद्यम चला रही हैं और गांव की अर्थव्यवस्था में सीधी भागीदार हैं।
क्या है सरकार की योजना
क्लाइमेट स्मार्ट गांव की परिकल्पना केवल ऊर्जा तक सीमित नहीं है। झारखंड सरकार ने National Mission on Natural Farming (NMNF) के तहत राज्य के 12 जिलों में 88 प्राकृतिक खेती क्लस्टर स्थापित करने की योजना बनाई है। हर क्लस्टर में लगभग 125 किसान शामिल हैं, जो जैविक खाद और प्राकृतिक उपायों से खेती कर रहे हैं। इससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और उत्पादन लागत घटती है।
इसके साथ राज्य में 138 Bio-Input Resource Centres (BRCs) स्थापित किए गए हैं, जहां वर्मी कम्पोस्ट, गोबर खाद और जीवामृत जैसे जैविक इनपुट तैयार किए जाते हैं। इन केंद्रों का संचालन स्वयं समुदाय के लोग करते हैं। इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर बढ़े हैं और बाहरी संसाधनों पर निर्भरता घटी है।
जल संरक्षण इस अभियान की रीढ़ है। झारखंड में जल जीवन मिशन के तहत अब तक 34 लाख ग्रामीण परिवारों को नल से जल उपलब्ध कराया गया है। साथ ही, वर्षा जल संचयन, तालाब निर्माण और सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। इन उपायों ने न केवल पेयजल की स्थिति सुधारी है, बल्कि कृषि उत्पादकता पर भी सकारात्मक असर डाला है।
महिलाओं की सशक्त भूमिका और स्मार्ट गांव
झारखंड में क्लाइमेट स्मार्ट गांवों में महिलाएं केवल भागीदार नहीं, बल्कि परिवर्तन की अगुआ बन चुकी हैं। राज्य की स्व-सहायता समूहों (SHGs) ने सौर ऊर्जा आधारित प्रसंस्करण इकाइयाँ, जैविक खाद उत्पादन केंद्र और ग्राम्य उत्पाद विपणन नेटवर्क चलाकर न केवल अपनी आजीविका मजबूत की है, बल्कि स्थानीय रोजगार और सामुदायिक विकास में भी सक्रिय भूमिका निभाई है। इससे उनकी आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ी, निर्णय क्षमता मजबूत हुई और गांव के विकास में उनकी आवाज़ और प्रभाव दोनों बढ़े हैं। ग्रामीण विकास मंत्री दीपिका पांडे सिंह के शब्दों में, “जब महिलाएं विकास की अगुआ बनती हैं, तो गांव खुद-ब-खुद आगे बढ़ने लगता है।”भागीदार बन रही हैं। इससे उनकी आय बढ़ी है, निर्णय क्षमता मजबूत हुई है और समुदाय में उनकी आवाज़ अधिक सुनी जाने लगी है। साथ ही, स्व-सहायता समूहों के जरिए महिलाएं न केवल अपने परिवार की आजीविका सुनिश्चित कर रही हैं, बल्कि स्थानीय रोजगार सृजन और पर्यावरण संरक्षण की पहल में भी अग्रणी बन रही हैं। इस प्रकार स्मार्ट गांव महिलाओं के लिए अवसरों और समानता का एक वास्तविक मंच बन गए हैं।
भविष्य की दिशा- हरित आत्मनिर्भरता की ओर
कोचा खास जैसे गांव अब झारखंड की उस कहानी का हिस्सा हैं जो विकास को केवल आंकड़ों में नहीं, बल्कि व्यवहार में दिखाती है। यहां ऊर्जा की हर किरण, मिट्टी की हर गंध और समुदाय का हर प्रयास एक साझा दिशा में बढ़ रहा है, हरित आत्मनिर्भरता की ओर।
राज्य सरकार और निजी संस्थानों की यह संयुक्त पहल दिखाती है कि जब तकनीक, समुदाय और नीति एक साथ चलते हैं, तो बदलाव केवल संभव नहीं, बल्कि स्थायी भी होता है। कोचा खास, सेहल और चट्टी जैसे गांव अब न केवल झारखंड बल्कि पूरे देश के लिए उदाहरण हैं — जहां हर घर में सौर रोशनी है, हर खेत में हरियाली है और हर मन में आत्मनिर्भरता का विश्वास है।




