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REASERCH DESK
यह कहानी सिर्फ किसी सरकारी योजना की सफलता नहीं है, बल्कि झारखंड की उन लाखों महिलाओं की बदलती ज़िंदगी की दास्तान है, जिन्होंने अपने हुनर को पहचान दी, अपनी मेहनत को बाज़ार दिया और अपनी पहचान को ‘पलाश’ नाम का पंख। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पहल पर साल 2020 में जब कोविड का डर, बेरोज़गारी और अनिश्चितता चारों ओर फैली थी, उसी समय एक नई उम्मीद ने जन्म लिया- ब्रांड पलाश। उद्देश्य साफ था: ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना, उन्हें एक मंच देना और उनके उत्पादों को सम्मानजनक बाज़ार दिलाना। आज पांच साल बाद पलाश ब्रांड का कारोबार 50 करोड़ रुपए के पार पहुंच चुका है और दो लाख से ज्यादा महिलाएं इस सफलता की साझेदार बन चुकी हैं।

2020 में लॉन्च हुए इस ब्रांड की शुरुआत छोटे-छोटे समूहों से हुई थी, लेकिन जैसे-जैसे महिलाओं का विश्वास बढ़ा, उत्पादन और बिक्री दोनों में लगातार उछाल आता गया। जेएसएलपीएस ने पलाश को सिर्फ एक ब्रांड नहीं बनाया, बल्कि इसे महिलाओं की मेहनत का ‘इकोनॉमिक आइडेंटिटी’ बना दिया। आज सबसे बड़ी बात यह है कि पहले जो महिलाएं पारंपरिक हुनर के बावजूद कमाई नहीं कर पाती थीं, वे अब सीधे अपनी आय बढ़ा रही हैं, बिना बिचौलियों के। गांवों की महिलाएं अब उद्यमी हैं, कारोबार संभाल रही हैं, डिजिटल प्लेटफॉर्म पर बिक्री सीख रही हैं और राज्य के बाहर तक अपने प्रोडक्ट भेज रही हैं।
पलाश की यह यात्रा कई सफल उदाहरणों से भरी हुई है। इनमें सबसे प्रेरक कहानी है रांची के सिल्ली की शीला देवी की। कभी हाउसकीपिंग कर अपने परिवार का गुज़ारा करने वाली शीला आज ‘लखपति दीदी’ के नाम से जानी जाती हैं। उन्होंने अन्य महिलाओं के साथ मिलकर “पलाश आजीविका दीदी कैफे” शुरू किया और झारखंड के स्थानीय व्यंजनों को अपना कारोबार बना लिया। दिल्ली के सरस मेला में हर साल उनके स्टॉल पर 6–7 लाख रुपए तक की बिक्री हो जाती है। यह सफलता सिर्फ उनका नहीं, बल्कि उन सैकड़ों महिलाओं का प्रमाण है जिनके जीवन को पलाश ब्रांड ने नई दिशा दी है।
आज झारखंड में 46 पलाश मार्ट और 24 डिस्प्ले-कम-सेल काउंटर संचालित हो रहे हैं। यहां से महिलाओं के बनाए गए उत्पाद सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचते हैं। जेएसएलपीएस का कहना है कि 2 लाख से अधिक महिलाएं सीधे तौर पर पलाश ब्रांड से जुड़ी हैं और और भी लाखों महिलाएं अप्रत्यक्ष रूप से लाभ उठा रही हैं। बेहतर पैकेजिंग, ब्रांडिंग और मार्केटिंग की सुविधा मिलने के बाद अब महिलाएं अपनी मेहनत का सही मूल्य हासिल कर रही हैं।
पलाश के उत्पाद न सिर्फ क्वालिटी में मजबूत हैं, बल्कि पूरी तरह परंपरागत और नेचुरल तरीके से तैयार किए जाते हैं। इस वजह से इनकी मांग लगातार बढ़ रही है। ब्रांड पलाश के तहत आज 30 से अधिक प्रमुख उत्पाद बनाए जा रहे हैं, जैसे जीराफूल चावल, ब्राउन राइस, मड़ुआ आटा, सरसों तेल, शहद, हर्बल आटा, मसाले, साबुन, डिटर्जेंट, हैंडवॉश और कई तरह के अचार। पलाश शहद जंगलों से संग्रहित, पूरी तरह शुद्ध और पौष्टिक है। सरसों तेल पारंपरिक पद्धति से निकाला जाता है, बिना किसी केमिकल के। अनपॉलिश दालें ग्रामीण थाली को और स्वस्थ बनाती हैं। यही वजह है कि हनी, मड़ुआ आटा, पुटकल और ओल का अचार, अरहर दाल, ज्वार आटा जैसे उत्पाद लोगों की पहली पसंद बन चुके हैं।
पलाश ब्रांड की पहचान सिर्फ झारखंड तक सीमित नहीं रही। हाल में ही, नोएडा में आयोजित राष्ट्रीय आजीविका सरस मेला में पलाश प्रोडक्ट्स को प्रथम पुरस्कार मिला। इसके अलावा दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित वर्ल्ड फूड इंडिया सम्मेलन में पलाश प्रोडक्ट्स आकर्षण का केंद्र बने रहे। इससे ब्रांड की विश्वसनीयता और बढ़ गई है।
ब्रांड के बढ़ते प्रभाव को जेएसएलपीएस की रिपोर्ट भी मजबूत करती है।
- साल 2020-21 में पलाश प्रोडक्ट की कुल बिक्री 97.74 लाख रुपए थी।
- 2021-22 में यह बढ़कर 1201.08 लाख रुपए हुई।
- तीसरे साल 1274.97 लाख रुपए की बिक्री हुई।
- 2023-24 में कुछ गिरावट के बावजूद बिक्री 885.93 लाख रुपए रही।
- लेकिन 2024-25 में पलाश ने रेकॉर्ड बनाते हुए 1548.70 लाख रुपए की बिक्री दर्ज की।
कुल मिलाकर पांच साल में ब्रांड पलाश ने 50 करोड़ रुपए से ज्यादा का कारोबार किया है—जो ग्रामीण महिलाओं की मेहनत और भरोसे का प्रमाण है।
जेएसएलपीएस के अधिकारियों का कहना है कि अब अगला लक्ष्य पलाश ब्रांड को एक बड़े स्तर पर ले जाना है। स्टेट प्रोग्राम मैनेजर नीतिश कुमार सिन्हा बताते हैं कि पलाश के तहत बनाए जा रहे 50 से अधिक उत्पाद बाजार में अपनी पहचान बना चुके हैं। मिशन अब यह है कि इन उत्पादों को और सुरक्षित, मजबूत और बड़े मार्केट तक पहुंचाया जाए। इसी सोच के तहत जल्द ही रांची में पलाश मॉल की शुरुआत होने जा रही है, जहां एक ही छत के नीचे महिलाओं के सभी उत्पाद उपलब्ध होंगे। आने वाले समय में इसे सभी जिलों तक विस्तार देने की योजना है।
13 अक्टूबर 2025 को आयोजित “अबुआ आजीविका संवाद कार्यक्रम” इसी दिशा में एक बड़ा कदम था। ग्रामीण विकास मंत्री दीपिका पांडे सिंह ने स्पष्ट कहा कि सरकार अब ‘पलाश मार्ट’ मॉडल को आगे बढ़ाते हुए ‘पलाश हाट’ की अवधारणा पर काम करेगी, ताकि ग्रामीण महिलाओं के उत्पादों को और व्यापक बाजार मिल सके। मंत्री ने बताया कि ग्रामीण महिलाएं अब अपने गाँव की अर्थव्यवस्था बदलने की ताकत रखती हैं, इसलिए सरकार उनकी हर चुनौती पर संवेदनशील है।

राज्य के ग्रामीण विकास सचिव के. श्रीनिवासन ने कहा कि अब महिलाओं के बने उत्पादों को एकीकृत ब्रांडिंग और व्यावसायिक पहचान देना समय की जरूरत है। गाँव की मेहनत सीधे मार्केट से जुड़े, यही पलाश का बड़ा उद्देश्य है। इसी सोच के साथ ब्रांड ‘अदिवा’ और ‘पलाश’ के फीडबैक मैकेनिज्म को भी मजबूत किया जा रहा है, ताकि हर गांव तक सप्लाई चेन बेहतर हो और महिलाओं की आय में सीधा इजाफा हो।
पलाश का सबसे दिलचस्प पहलू है- इसे संभालने वाली महिलाएं अब सिर्फ उत्पादक नहीं रहीं, बल्कि उद्यमी बन चुकी हैं। हेहल के पलाश मार्ट में काम करने वाली अरुणा देवी बताती हैं कि सभी जिलों की महिलाएं अपने प्रोडक्ट यहां भेजती हैं। बिना केमिकल, बिना पॉलिश तैयार किए गए सामान मार्केट में अलग पहचान बना रहे हैं। यही वजह है कि क्वालिटी को देखते हुए इसकी कीमत भले कुछ ज्यादा हो, मगर मांग लगातार बढ़ रही है।
आज पलाश झारखंड के गांवों की नई पहचान है। इस ब्रांड के चलते महिलाओं के पास सिर्फ रोजगार नहीं आया, बल्कि आत्मविश्वास भी लौटा है। वे समूह चला रही हैं, स्टॉल संभालती हैं, बड़े एक्सपो में हिस्सा लेती हैं और अपने उत्पादों के लिए नए ग्राहक खोज रही हैं। पलाश ने महिलाओं को घर की सीमाओं से निकालकर बाजार तक पहुंचाया है। और यही इसकी सबसे बड़ी जीत है।
पांच साल में खड़ा हुआ 50 करोड़ का कारोबार बताता है कि अगर अवसर मिले, तो ग्रामीण महिलाएं आर्थिक व्यवस्था की कड़ी बदल सकती हैं। झारखंड सरकार पलाश को अब ‘नेक्स्ट लेवल’ पर ले जाने की तैयारी में है। आने वाले समय में पलाश हाट, पलाश मॉल और एकीकृत ब्रांडिंग सिस्टम झारखंड की महिला उद्यमिता को और उभार देगा। पलाश अब सिर्फ एक ब्रांड नहीं, बल्कि एक आंदोलन बन चुका है, जो बताता है कि जब नारी शक्ति को सही मंच मिलता है, तो गांव भी आगे बढ़ता है, परिवार भी बदलता है और पूरी अर्थव्यवस्था नई दिशा पकड़ लेती है।

