Bahraich
उत्तर प्रदेश के बहराइच में हुए सांप्रदायिक दंगे के एक मामले में अदालत के फैसले ने सजा से ज्यादा उसके तर्क को लेकर बहस छेड़ दी है। बीबीसी हिंदी डॉट कॉम की रिपोर्ट के मुताबिक, सेशन कोर्ट ने दंगे के मुख्य अभियुक्त सरफ़राज़ को फांसी की सजा सुनाते हुए अपने आदेश में मनु स्मृति का हवाला दिया है, जिस पर कानूनी और राजनीतिक हलकों में सवाल उठ रहे हैं।
11 दिसंबर को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (प्रथम) पवन कुमार शर्मा ने अक्टूबर 2024 में हुई हिंसा के दौरान राम गोपाल मिश्रा की हत्या के मामले में सरफ़राज़ को दोषी ठहराते हुए मृत्युदंड सुनाया। इसी फैसले में नौ अन्य अभियुक्तों को उम्रकैद की सजा दी गई, जबकि तीन अभियुक्तों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया।
यह मामला 13 अक्टूबर 2024 का है, जब दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान महसी तहसील के महराजगंज इलाके में हिंसा भड़क गई थी। अभियोजन के अनुसार, राम गोपाल मिश्रा एक अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति के मकान की छत पर झंडा बदलने की कोशिश कर रहे थे, इसी दौरान विवाद बढ़ा और उन्हें गोली मार दी गई।
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि इस अपराध से पूरे क्षेत्र में दहशत फैल गई थी, आवश्यक सेवाएं ठप हो गई थीं और हालात कर्फ्यू जैसे बन गए थे। फैसले में मृतक की पत्नी रोली मिश्रा का उल्लेख करते हुए कहा गया कि वह शादी के महज चार महीने के भीतर विधवा हो गईं, जो परिवार के लिए जीवनभर की त्रासदी है।
बीबीसी हिंदी के अनुसार, अभियोजन पक्ष ने अदालत को बताया कि राम गोपाल मिश्रा की हत्या बेहद क्रूर और नृशंस तरीके से की गई थी। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में 29 एंट्री वुंड और दो एग्जिट वुंड पाए गए। अभियोजन ने इसे ठंडे दिमाग से की गई हत्या बताया, जिसका उद्देश्य समाज में भय पैदा करना था।
हालांकि घटना के समय पुलिस ने गोली लगने से मौत की पुष्टि की थी और अन्य आरोपों से इनकार किया था। बाद में फोरेंसिक जांच में बरामद हथियार और गोलियों के मिलान की पुष्टि की गई। अभियोजन के मुताबिक, इसी हथियार से सरफ़राज़ ने गोली चलाई थी।
फैसले के सबसे विवादित हिस्से में जज ने अपने आदेश के पेज नंबर 135 पर मनु स्मृति का उल्लेख किया। उन्होंने लिखा कि दंड ऐसा होना चाहिए जिससे समाज में पनप रहे अपराधियों के भीतर भय उत्पन्न हो और न्याय व्यवस्था पर विश्वास बना रहे। इसी संदर्भ में मनु स्मृति के श्लोक को उद्धृत किया गया।
मनु स्मृति के हवाले को लेकर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हैं। जहां कुछ नेताओं ने इसे न्यायाधीश का विवेक बताया, वहीं विपक्षी दलों ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि दंगों के मामलों में आमतौर पर अदालतें सामूहिक हिंसा और अचानक भड़की स्थिति को ध्यान में रखती हैं, लेकिन इस मामले में अदालत ने हत्या की मंशा को स्पष्ट और लक्षित मानते हुए कठोरतम सजा दी है।
फैसले के बाद मृतक की पत्नी रोली मिश्रा ने संतोष जताया, जबकि अभियुक्त पक्ष के वकीलों ने इसे ऊपरी अदालत में चुनौती देने की बात कही है। अब इस पूरे मामले पर अंतिम फैसला उच्च न्यायालयों के स्तर पर होना तय माना जा रहा है।

