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बिहार विधानसभा चुनाव में रिकॉर्डतोड़ मतदान के बीच वोटरों के नाम हटाने को लेकर बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। विशेष गहन मतदाता पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया में जिन सीटों पर सबसे ज्यादा वोट डिलीट किए गए, वहां के ताज़ा नतीजे दिलचस्प संकेत दे रहे हैं। विपक्ष लगातार आरोप लगा रहा है कि बड़े पैमाने पर नाम काटे गए, लेकिन चुनाव आयोग के आंकड़े उससे अलग तस्वीर पेश करते हैं।
सबसे ज्यादा 56,793 वोट गोपालगंज में डिलीट हुए, पूर्णिया में 50,767, और मोतिहारी में 49,747 नाम हटाए गए। इन तीनों सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है। इसके अलावा कुचायकोट में 43,226 नाम हटे, जहां जदयू प्रत्याशी विजयी हुए। वहीं किशनगंज, जहां 42,940 नाम डिलीट किए गए, कांग्रेस ने अपना कब्जा बरकरार रखा। कुल मिलाकर टॉप–5 डिलीशन वाली सीटों में चार पर NDA और एक पर कांग्रेस की जीत हुई।
चुनाव दो चरणों—6 और 11 नवंबर—में संपन्न हुए और राज्य ने रिकॉर्ड 67.13% मतदान दर्ज किया। महिलाओं का प्रतिशत 71.78% था, जो पुरुषों के 62.98% से काफी अधिक रहा। इसी बीच विपक्ष ने SIR प्रक्रिया को “वोट चोरी” का बड़ा कारण बताया, जबकि नतीजों में इसका असर उलटा ही दिखाई दिया।
दूसरी ओर, जहां वोटरों के नाम सबसे कम हटाए गए, वहां नतीजे और विविध रहे। दरभंगा में सिर्फ 2,859 वोट डिलीट हुए—राज्य में सबसे कम—और यहां भी भाजपा ने जीत हासिल की। चनपटिया (6031) में कांग्रेस, बेतिया (6076) में BJP, जबकि डेहरी (6219) और महुआ (6302) में चिराग पासवान की LJPR ने जीत दर्ज की।
साफ है कि वोट डिलीट की संख्या और चुनावी नतीजों के बीच सीधी रेखा खींचना आसान नहीं है। हालांकि विवाद फिलहाल थमा नहीं है और विपक्ष इसे चुनावी मुद्दा बनाने की तैयारी में है।

