RANCHI
स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री और प्रखर राष्ट्रवादी विचारक मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती के अवसर पर रांची विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के सभागार में एक महत्वपूर्ण सेमिनार का आयोजन किया गया। इस समारोह ने न केवल मौलाना आजाद के जीवन और संघर्षों को याद किया, बल्कि उनके द्वारा भारत के शैक्षिक और सामाजिक विकास में दिए गए अमूल्य योगदान पर गहन विमर्श भी किया। सेमिनार में उपस्थित विद्वानों, शिक्षाविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मौलाना आजाद को एक ऐसे दूरदर्शी नेता के रूप में चित्रित किया, जिन्होंने शिक्षा के माध्यम से राष्ट्र निर्माण की नींव रखी और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को मजबूती प्रदान की।
सेमिनार के मुख्य अतिथि रांची विश्वविद्यालय के उपकुलपति डॉ. धर्मेंद्र सिंह थे, जिन्होंने अपनी प्रेरणादायक भाषण के माध्यम से मौलाना आजाद की जीवनी पर विस्तार से प्रकाश डाला। मंच की अध्यक्षता उर्दू विभाग के प्रमुख डॉ. रिजवान अंसारी ने की, जबकि विशिष्ट अतिथियों में माही (सह-संयोजक), झारखंड राज्य सुन्नी वक्फ बोर्ड के सदस्य इबरार अहमद, इतिहास विभाग की पूर्व डीन डॉ. सुजाता सिंह, प्रोफेसर वंदना तथा झारखंड विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष दिनेश उरांव प्रमुख रूप से उपस्थित रहे। इन अतिथियों की उपस्थिति ने सेमिनार को एक व्यापक मंच प्रदान किया, जहां विभिन्न दृष्टिकोणों से मौलाना आजाद के विचारों की चर्चा हुई।

डॉ. धर्मेंद्र सिंह ने अपने संबोधन में कहा, मौलाना आजाद न केवल एक विद्वान थे, बल्कि भारत के विकास की आधारशिला थे। उनके योगदान शिक्षा क्षेत्र में विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) जैसे संस्थानों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और स्वतंत्र भारत में शिक्षा नीति की रूपरेखा तैयार की।” उन्होंने मौलाना आजाद के प्रयासों को सराहते हुए उन्हें ‘दूरदर्शी’ कहा और जोर दिया कि आज के दौर में उनके विचार युवा पीढ़ी के लिए प्रासंगिक बने हुए हैं। उपकुलपति ने यह भी उल्लेख किया कि मौलाना आजाद ने शिक्षा को केवल साक्षरता तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे सामाजिक समानता और राष्ट्रीय एकता का माध्यम बनाया। उनके नेतृत्व में स्थापित शिक्षण संस्थानों ने लाखों छात्रों को सशक्त बनाया, जो आज भी देश के विकास में योगदान दे रहे हैं।

सेमिनार के एक अन्य प्रमुख वक्ता, इबरार अहमद ने भारत विभाजन के दर्दनाक इतिहास को चित्रित करते हुए मौलाना आजाद को ‘सच्चा देशभक्त’ और ‘धर्मनिरपेक्षता का प्रखर अगुवा’ बताया। उन्होंने कहा, “मौलाना आजाद ने विभाजन के काले अध्याय को रोकने के लिए अंतिम प्रयास किया। उन्होंने मुसलमानों के पलायन को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और साबित किया कि सच्ची देशभक्ति धर्म या समुदाय की सीमाओं से परे होती है।” इबरार अहमद ने विभाजन के दौरान हुए मानवीय संकटों का जिक्र करते हुए बताया कि मौलाना आजाद ने कांग्रेस के माध्यम से एकता की अपील की और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष किया। उनका यह योगदान आज भी भारत की बहुलतावादी संस्कृति का प्रतीक है।
डॉ. रिजवान अंसारी ने अध्यक्षीय भाषण में सेमिनार के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उर्दू विभाग का यह आयोजन मौलाना आजाद की साहित्यिक और शैक्षिक विरासत को जीवंत रखने का प्रयास है। उन्होंने युवा छात्रों से अपील की कि वे मौलाना आजाद के ग्रंथों जैसे ‘गुब्र-ए-हिंद’ और ‘इंडिया विन्स फ्रीडम’ का अध्ययन करें, जो स्वतंत्रता संग्राम और शिक्षा के महत्व को उजागर करते हैं।
अन्य वक्ताओं में डॉ. सुजाता सिंह ने मौलाना आजाद के महिलाओं की शिक्षा पर जोर पर चर्चा की, जबकि प्रोफेसर वंदना ने उनके साहित्यिक योगदान को रेखांकित किया। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष दिनेश उरांव ने आदिवासी समुदाय के संदर्भ में मौलाना आजाद के समावेशी दृष्टिकोण की सराहना की। सेमिनार में प्रतिभागियों ने विभिन्न सत्रों में शोध पत्र प्रस्तुत किए, जिनमें मौलाना आजाद के राजनीतिक विचार, शिक्षा सुधार और सांप्रदायिक सद्भाव पर केंद्रित चर्चाएं हुईं।

यह सेमिनार न केवल मौलाना आजाद की स्मृति को ताजा करने का माध्यम बना, बल्कि वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में उनके विचारों की प्रासंगिकता को भी रेखांकित किया। रांची विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग ने इस आयोजन के माध्यम से एक बार फिर अपनी सांस्कृतिक और शैक्षिक प्रतिबद्धता का परिचय दिया। सेमिनार का समापन धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ, जहां सभी अतिथियों ने भविष्य में ऐसे और आयोजनों की आवश्यकता पर बल दिया।

