‘ब्लूज’ संगीत, जिसे अमेरिकन बिरहा और बिदेसिया कहा जाता है, जानिये अश्वेतों ने कैसे किया इसका इजाद

19th October 2025

PRAVEEN JHA
नॉर्वे के कॉन्ग्सबर्ग शहर में पोस्टर लगे हैं। वार्षिक जैज्ज उत्सव में ऐसा बैंड आ रहा है, जो अपनी पचासवीं वर्षगाँठ मना रहा है। यह बैंड कहीं इतिहास में खो गया था, हालाँकि इससे पहले भी कभी-कभार हुलकी मारी। अब वह नयी ऊर्जा के साथ दुनिया भ्रमण पर निकला है। इस पोस्टर पर जो तस्वीरें दिख रही हैं, उनमें कुछ भारतीय और ब्रिटिश कलाकार साथ हैं। एक जॉन मकलॉलिन हैं, जो गिटार बजाते हैं। एक उस्ताद जाकिर हुसैन है, जिनके तबले का सानी ढूँढना कठिन है। बैंड के मुख्य गायक शंकर महादेवन हैं और इस जैज्ज बैंड का नाम है- शक्ति। भला ये ब्रिटिश और भारतीय मिल कर अमरीकी माने जाने वाला संगीत क्यों बजा रहे हैं, और यूरोप के लोग हर साल ऐसे उत्सव क्यों कर रहे हैं?
इस प्रश्न के उत्तर के लिए जापानी लेखक हारीकु मुराकामी के घर में झाँका जा सकता है, जहाँ सैकड़ों जैज्ज रिकॉर्ड रखे हैं। संगीत किसी काल, सीमा या दिशा से बँधा नहीं होता। ये तमाम जैज्ज, ब्लूज, आर एंड बी, रॉक एंड रॉल, हार्ड रॉक, पॉप आदि नाम भले विदेशी लगते हों, इनकी उपज साझी है। सुमित्रानंदन पंत की पंक्तियाँ हैं-
“वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा ज्ञान
निकल कर आँखों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान”

सदियों पहले जब अमरीकी धरती पर अफ़्रीकी गुलाम लाए गए, तो वे अपने साथ कोई भौतिक चीज नहीं ला सके। लेकिन जब खेतों में काम कर वे थक जाते, तो बैठ कर कुछ गुनगुनाते। जैसे भारत में बिरहा और बिदेसिया हैं, कुछ इस तरह का एक बिछोह का भाव लिए। पश्चिम अफ्रीका की छूट गयी धरती, दासता की वेदना, संघर्ष से उपजी जीजीविषा, और ईश्वर से संवाद। यह ‘ब्लूज’ कहलाता। अमरीका में गृह युद्ध (1861-65) के समय ड्रम बजा कर सेना को उत्साहित रखने के क्रम में ताल और लय (रिद्म) भी इस संगीत से जुड़ते गए। इससे उत्पत्ति हुई ‘रिद्म एंड ब्लूज’ (आर एंड बी) की।
ये संगीत उन दिनों अश्वेतों की थाती थी। श्वेत अमरीकी मालिकों के कानों में ये संगीत पहुँचती भी थी, तो इसका खास महत्व नहीं था। रेडियो या किसी रिकॉर्डिंग की बात तो छोड़ ही दी जाए। इसकी ध्वनि अक्सर किसी तुरही (ट्रंपेट) या सैक्सोफ़ोन से निकलती, और साथ में कुछ छोटे ड्रम बजाए जाते। धीरे-धीरे इसमें पियानो भी जुड़ गया, और बाद में कुछ झूमते हुए नर्तक भी।
अमरीका के न्यू ऑर्लिन्स और आस-पास के इलाकों में इस संगीत में कुछ प्रयोग किए जाने लगे। विस्तार दिया जाने लगा। जैसे भारतीय संगीत में जुगलबंदी या सवाल-जवाब होता है कि एक ने बाँसुरी बजायी तो तबले ने उसका जवाब दिया, कुछ उसी तरह इस संगीत में भी होने लगा। यह जो ऑन-द-स्पॉट सोच या उपज बनती, यह जैज्ज कहलाने लगी।
माफिया से मिली जैज्ज को पहचान
बीसवीं सदी की शुरुआत (1920-33) में अमरीका में शराबबंदी आयी, और इसके साथ ही माफिया युग भी आ गया। ‘गॉडफादर’ फिल्म की तरह गोल टोपी और काली सूट में घूमते क्यूबन सिगार मुँह में दबाए दबंग। शिकागो में एक मशहूर माफिया अल कपोन का दबदबा था। उसने एक अवैध ‘स्पीकईजी’ बार शुरू किया, जहाँ शराब से शबाब का इंतजाम होता। ऐसे शराबखाने में न्यू ऑरलींस और आस-पास के इलाकों से ये अश्वेत जैज्ज बैंड बुलाए जाने लगे। उनमें लुई आर्मस्ट्रांग नामक एक संगीतकार मशहूर हुए, जिनके संगीत को रईस गोरे लोगों और स्त्रियों ने खूब पसंद किया। उन दिनों जब अश्वेतों को कालेजों और संभ्रांत रेस्तराँ में जाने की अनुमति नहीं थी, संगीत ने उन्हें पहचान देनी शुरू की।
धीरे-धीरे इस कड़ी में कई नाम जुड़ते गए। जैसे जॉन कॉल्ट्रेन, चार्ली पार्कर, एला फिज्जेराल्ड, और बाद में सबसे लोकप्रिय नामों में रहे माइल्स डेविस। उस्ताद जाकिर हुसैन से जुड़े जॉन मकलॉलिन भी माइल्स डेविस के साथ गिटार बजाते थे।
संगीत ने श्वेतों और अश्वेतों के मध्य एक पुल बनाना शुरू किया, और कई श्वेत अब उनके समर्थन में आने लगे। क्रांति के बिगुल बजने लगे, और इसका प्रभाव संगीत पर भी पढ़ने लगे। पहले इस संगीत में करुणा और भक्ति रस था। इसे गिरजाघर के गॉस्पेल संगीत से जोड़ा जाता था। अब इसमें वीर रस का संचार होने लगा, और लय तेज होने लगा। लोग पियानो पर तेजी से उंगलियाँ फेरते, गिटार बजाते, नाचते हुए कलाबाजियाँ करने लगे।
धीरे-धीरे गोरों की भी रुचि इस संगीत में होने लगी, और उन्होंने अश्वेतों की नकल करनी शुरू की। 1954 में फिलाडेल्फिया के बिल हैली ने एक गीत गाया- रॉक अराउंड द क्लॉक। यह जैज्ज संगीत का तेज और झूमता हुआ वर्जन था, जो कहलाने लगा रॉक एंड रॉल।
रॉक एंड रॉल से झूमा अमेरिका
मेम्फिस शहर में एक गोरे युवा ट्रक ड्राइवर ने अश्वेतों के अंदाज में ही नाचते हुए गाना शुरू किया। वह हाथ में माइक पकड़ कर घुटने मोड़ कर जुल्फें हिलाते हुए गाया करता। उन्हीं दिनों सैम फिलिप्स नामक एक व्यक्ति घूम-घूम कर अश्वेतों का संगीत रिकॉर्ड कर रहे थे, सन रिकॉर्ड्स नाम से। उनकी नजर जब इस गोरे मचलते गायक पर पड़ी, तो उन्हें कमाल का मार्केटिंग आइडिया आया। किसी गोरे की आवाज में अश्वेतों से उपजा संगीत लोकप्रिय हो सकता था। उन्होंने इन युवक से करार किया। वह युवक एल्विस प्रेस्ले नाम से मशहूर हुआ। उनकी अदाएँ दुनिया भर ने देखी और शम्मी कपूर जैसे भारतीय अभिनेता उनकी नकल उतारने लगे।
जब पचास के दशक में शिकागो में कई फैक्ट्रियाँ खुलनी शुरू हुई, तो अश्वेतों को मजदूरी के लिए बुलाया जाने लगा। वे अब दक्षिण के गाँवों से उठ कर शहर आने लगे थे, और अपने साथ संगीत भी ला रहे थे। चक बेरी और लिटल रिची जैसे अश्वेत जूते थपथपाते, तालियाँ बजाते, नाच-नाच कर पियानो बजाते गा रहे थे। लिटल रिची के गीत ‘टूटी फ्रूटी’ की नकल एक गोरे जेरी लेविस ने उतारी, जो टेलीविजन पर खूब पसंद किया गया। अब लोग ढूँढ-ढूँढ कर इन अश्वेत कलाकारों को सुनने लगे। गोरी महिलाएँ उनकी फैन होने लगी। यह चीजें अमरीका के लिए नयी थी।
बहरहाल, जैसे-जैसे इस संगीत का लय बढ़ता गया, स्टेज पर हुड़दंग भी होने लगी। गिटार के तार तोड़ डालना। पियानो के ऊपर कूद जाना। कपड़े उतार कर श्रोताओं की ओर फेंक देना। यहाँ तक कि मंच पर आग लगा देना। जैज्ज और ब्लूज में शांति थी, जिसे घंटों बैठ कर सुना जा सकता है। जबकि रॉक एंड रॉल में बेचैनी थी। उस समय जब अश्वेत आंदोलन और विद्रोही तेवर उभरने लगे थे, तो रॉक एंड रॉल इसकी आवाज बनने जा रहा था।
लेकिन, समाज में एक परंपरावादी खेमा भी होता है, जिसे यह संगीत अब चुभने लगा था। उन दिनों अमरीकी संसद में कहा गया- “यह रॉक-रोल हमारी संस्कृति का नाश कर रहा है। युवक और महिलाएँ बिगड़ते जा रहे हैं। सभी विद्रोही बन रहे हैं।”
नतीजतन यह रॉक एंड रॉल धीरे-धीरे अपनी जमीन खोने लगा। लिटल रिची ने संगीत छोड़ कर ईश्वर की आराधना में जाने का निर्णय लिया। जेरी लेविस के गानों पर पाबंदी लगा दी गयी। एक गायक बडी हॉली की हवाई दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। एल्विस प्रेसले भी गाना छोड़ कर अभिनय की दुनिया में हाथ आजमाने लगे। सिर्फ चक बेरी अपने विद्रोही तेवर के साथ रॉक एंड रॉल गाते रहे।
पॉप, रॉक और रैप
रॉक एंड रॉल के अवसान के साथ एक सुगम संगीत की धारा पनपने लगी। इसमें गीतों को गिटार बजाते हुए कुछ मध्यम लय में गाया जाता। न रॉक एंड रॉल की तरह तेज, न जैज्ज की तरह धीमी। इसमें शृंगार रस या रोमांस होता, जिसमें थोड़ा जैज्ज, थोड़ा रॉक एंड रॉल, थोड़ा यूरोपीय संगीत, सब मिला होता। यह पॉपुलर संगीत कहलाने लगा- पॉप। यह लंबी रेस का घोड़ा था जो आज तक दौड़ रहा है। इसमें खास कर महिला गायकों ने भी जम कर भाग लिया।
पॉप संगीत अमरीका से बाहर ब्रिटेन और बाकी यूरोप में भी उपजा। बल्कि यूँ कहें कि इसका केंद्र अमरीका के बाहर ही था जहाँ बीटल्स, क्वीन और अब्बा जैसे बैंड मशहूर हुए। अमरीका में इसकी जगह एक आक्रामक रूप पसर रहा था, जो हिप्पी संस्कृति और वियतनाम युद्ध की बेचैनी से जन्मा था। इसमें बाल झटकते हुए इलेक्ट्रिक बेस गिटार बजाते हुए अक्सर कर्कश होती ध्वनि में तान लेते हुए गाते। यह कहलाने लगा- रॉक।
रॉक के गीत, गिटार और ड्रम की कलाबाजियाँ, और मंच पर गायक की ऊर्जा इसे बहुत ही प्रभावी बना देती। मैंने इस संगीत का पागलपन देखा है, जब सैकड़ों लोग अपने बाल हिला-हिला कर झूम रहे होते। भीड़ का मंच के साथ जुड़ना इसकी खासियत थी। इसमें शराब और तमाम नशीले पदार्थों का सेवन भी भूमिका निभाता, और कई संगीतकारों की इस कारण असमय मृत्यु भी हुई। रॉक बैंड ‘निर्वाना’ के कर्ट कोबैन ने आत्महत्या कर ली।

दो अन्य तरह के गीत लोकप्रिय होने लगे
अस्सी के दशक में दो अन्य तरह के गीत लोकप्रिय होने लगे। मुझे स्मरण है जब 2004 में मैं शिकागो में गाड़ी चलाते हुए एक अश्वेत मुहल्ले में पहुँच गया। वहाँ एक गली को उन्होंने बंद कर रखा था, जिसके कारण मुझे गाड़ी घुमानी पड़ी। वे नाचते-गाते हुए गाड़ी के पास आ गए और गाड़ी की छत थपथपाने लगे। मैंने मुस्कुरा कर अभिवादन किया और वहाँ से निकल गया। यह ‘ब्लॉक पार्टी’ कही जाती जो इन मुहल्लों में आम थी, जब एक पूरी गली बंद कर समुदाय के लोग उत्सव करते।
न्यूयॉर्क के अश्वेत बहुल ब्रॉन्क्स इलाके में इसी तरह औचक तुकबंदी कर गीत गाए जाने लगे और नाचने-गाने के दंगल होने लगे। जैसे जोगीरा के फकड़े और बिरहा के दंगल, कुछ उसी तरह छंद में तेज लय में गाकर ताल देते हुए गाना। इस पूरे माहौल से ‘हिप हॉप’ संगीत की उपज हुई। इसमें तुकबंदी कर गाने की शैली ‘रैप’ कहलायी। ‘रैप’ के लिए किसी वाद्य-यंत्र की जरूरत नहीं थी। सिर्फ अपनी लय के साथ गाने से ही संगीत उत्पन्न हो जाता। यह विरोध का स्वर भी बना, व्यंग्य का भी, और सामाजिक संदेश का भी। यह पूरी तरह अश्वेत संस्कृति का प्रतिनिधि था, जो अमरीका से कैरीबियन द्वीपों तक प्रभाव डाल गया। हालाँकि कैरीबियन द्वीपों का क्रियोल, रेगे और चटनी संगीत एक अलग मिसाल है, जिसकी चर्चा यहाँ करना विषयांतर हो जाएगा।
रैप संगीत में भी श्वेत गायकों जैसे एमिनेम की दखल हुई और वह ग्रैमी पुरस्कार तक जीते। एक बार फिर संगीत ने रंगों के भेद को पाटने में सहयोग दिया और कभी न्यूयार्क की अश्वेत बस्ती से शुरू हुआ संगीत दुनिया भर में लोकप्रिय हुआ। भारतीय अभिनेता अभिषेक बच्चन तक रैप गीत गाने लगे। मैंने हाल में एक मैथिली भाषा की फिल्म देखी- जैक्सन हॉल्ट। उसमें भी एक खूबसूरत रैप गीत बन पड़ा है।
एक कहावत है कि जैज्ज संगीत दिमाग की उपज है। ब्लूज संगीत दिल की। रॉक एंड रॉल से लेकर रैप तक नाभि के नीचे से उपजने शुरू होते हैं, और आदमी संगीत सुनते ही थिरकने लगता है। यूँ भी कहा जा सकता है कि जैज्ज और ब्लूज अभिजात्य या शास्त्रीय परंपरा की चीजें बनती चली गयी, जिनको सुनने वालों का वर्ग अलग है। जबकि रैप या हिप हॉप हर तबके, हर उम्र के लोग पसंद करने लगे। डांस-क्लबों में भी वही बजा करते हैं। इसमें श्रेष्ठता की बात बेमानी है क्योंकि इन सबकी कहानी तारीखों में दर्ज है। बदलती दुनिया में संगीत भी अपनी नयी राह बनाता रहता है, और श्रोताओं की पसंद भी बदलती रहती है।

(प्रवीण कुमार झा का यह लेख जून 2023 में ‘अहा जिंदगी’ में प्रकाशित हुआ है। यह पत्रिका दैनिक भास्कर के मोबाइल ऐप्प पर उपलब्ध है। इस आलेख को यहीं से साभार लिया गया है)

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