DHANBAD
कुड़मी समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) सूची में शामिल करने की मांग को लेकर शुरू हुआ विवाद अब राज्यभर में उबाल पर है। इसी क्रम में रविवार को धनबाद में आदिवासी समुदाय ने इस मांग के खिलाफ एक विशाल आक्रोश महारैली निकाली।
रैली धनबाद के गोल्फ ग्राउंड से शुरू होकर उपायुक्त कार्यालय तक निकाली गई, जिसमें बड़ी संख्या में पुरुष, महिलाएं और युवा शामिल हुए। भीड़ पारंपरिक परिधानों में तीर-धनुष, ढोल-नगाड़ों और बैनरों के साथ अपनी असहमति जाहिर कर रही थी। पूरे मार्च के दौरान “कुड़मी नहीं आदिवासी” जैसे नारे गूंजते रहे।
आदिवासी नेताओं ने कहा कि कुड़मी समुदाय कभी भी पारंपरिक या सांस्कृतिक रूप से आदिवासी समाज का हिस्सा नहीं रहा है। उनका तर्क है कि कुड़मी समाज पहले से आर्थिक रूप से मजबूत और शिक्षित वर्ग है, जबकि आदिवासी समाज आज भी उपेक्षा और विकास की कमी से जूझ रहा है। नेताओं ने यह भी चेतावनी दी कि यदि कुड़मियों को ST सूची में शामिल किया गया तो इससे असली आदिवासियों के अधिकार और अवसर और कम हो जाएंगे।
इधर, कुड़मी समाज अपने आंदोलन को जारी रखने के पक्ष में है। उन्होंने 20 सितंबर को ‘रेल टेका डहर छेका’ आंदोलन शुरू किया था, जिसमें JLKM सुप्रीमो जयराम महतो और AJSU प्रमुख सुदेश महतो ने भी हिस्सा लिया था। दोनों नेताओं ने खुले तौर पर कुड़मियों के ST दर्जे की मांग का समर्थन किया था।
राजनीतिक स्तर पर यह मुद्दा लगातार तूल पकड़ रहा है। जहां कुछ दलों ने स्पष्ट रूप से पक्ष ले लिया है, वहीं कई पार्टियां अब भी चुप हैं। राज्य में बयानबाज़ी तेज है — एक ओर आदिवासी समुदाय ST दर्जे के विरोध में एकजुट है, तो दूसरी ओर कुड़मी समाज अपनी मांग को लेकर आने वाले दिनों में और उग्र आंदोलन की तैयारी में है।
अब राज्य की राजनीति इसी सवाल पर अटकी है कि आखिर समानता और पहचान की इस जंग में किसे मिलेगा प्राथमिक अधिकार — कुड़मी या आदिवासी समाज?




