झारखंड में राशनकार्ड के KYC में हो रही देरी, आदिम जनजातियों पर असर; केंद्र की रद्दीकरण प्रक्रिया सवालों में

23rd September 2025

न्यूज डेस्क

झारखंड में राशनकार्ड धारकों के लिए अनिवार्य की गई ई-केवाईसी प्रक्रिया ने लाखों जरूरतमंद लोगों को परेशान कर दिया है। तकनीकी खामियों और प्रशासनिक लापरवाही के कारण बड़ी संख्या में कार्डधारकों को राशन मिलने में कठिनाई हो रही है, जिससे राज्य में कुपोषण और भूख का संकट और गहराने की आशंका है।

द वायर में विवेक गुप्ता की रिपोर्ट के अनुसार, लातेहार जिले के मनिका प्रखंड स्थित बिचलीदाग गांव के सतेंद्र सिंह के बेटे विनीत का ई-केवाईसी अब तक नहीं हो सका है। प्रखंड कार्यालय ने पहले आधार अपडेट की शर्त रखी है, जिसके लिए जन्म प्रमाणपत्र जरूरी बताया गया। कई चक्कर लगाने के बावजूद आधार अपडेट नहीं हुआ और न ही ई-केवाईसी। यह अकेला मामला नहीं है — ऐसे हजारों उदाहरण झारखंड भर में फैले हुए हैं।

ई-केवाईसी में देरी, रद्दीकरण की जल्दबाजी

पश्चिमी सिंहभूम जैसे जिलों में पिछले छह महीनों से ई-केवाईसी न कराने और राशन न उठाने वालों के कार्ड रद्द करने की कार्रवाई शुरू हो चुकी है। केंद्र सरकार ने राज्य को करीब 41 लाख “अयोग्य” राशन कार्डधारकों की सूची सौंपी है, जिनमें मृत व्यक्ति, डुप्लीकेट कार्ड और 2.4 एकड़ से अधिक भूमि वाले शामिल हैं। झारखंड में 4 अगस्त 2025 तक 2.5 लाख कार्ड पहले ही रद्द किए जा चुके हैं, लेकिन इस प्रक्रिया की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।

मनिका प्रखंड के कोपे गांव में जांच में सामने आया कि पंचायत प्रतिनिधियों को न तो रद्दीकरण की पूर्व जानकारी दी गई और न ही कोई नोटिस। यह ‘झारखंड जन वितरण प्रणाली (नियंत्रक), 2024’ के नियमों का सीधा उल्लंघन है।

ई-केवाईसी क्या है और क्यों अनिवार्य किया गया है?

ई-केवाईसी (इलेक्ट्रॉनिकली नो योर कस्टमर) एक आधार आधारित सत्यापन प्रणाली है, जो बायोमेट्रिक या चेहरे की पहचान के जरिये की जाती है। इसका उद्देश्य फर्जी और अयोग्य लाभार्थियों को हटाकर वास्तविक ज़रूरतमंदों को लाभ पहुंचाना है। केंद्र सरकार ने इसे 30 जून 2025 तक अनिवार्य कर दिया है, और समय सीमा के बाद सब्सिडी रोके जाने की चेतावनी दी गई है।

क्या है जमीनी हकीकत

5 अगस्त 2025 तक झारखंड के 72.9 लाख राशनकार्डों में से 14.6 लाख ऐसे हैं जिनमें आधार लिंकिंग ही नहीं हुई है, जिससे वे ई-केवाईसी से सीधे बाहर हो जाते हैं। नवंबर 2024 से जून 2025 के बीच चली प्रक्रिया में तमाम अड़चनें सामने आईं — जैसे पुरानी 2जी ई-पॉस मशीनें, नेटवर्क की कमी, धीमे सर्वर, बायोमेट्रिक विफलता और आधार में मोबाइल नंबर न जुड़े होना।

खाद्य आपूर्ति विभाग के प्रभारी सचिव उमाशंकर सिंह ने दिसंबर 2024 में स्वीकार किया था कि सर्वर की ओवरलोडिंग के चलते न तो राशन वितरण ठीक से हो पा रहा था और न ही ई-केवाईसी प्रक्रिया आगे बढ़ पा रही थी। ग्रामीण इलाकों में लोग बार-बार प्रखंड कार्यालय, आधार केंद्र और राशन दुकानों के चक्कर लगाने को मजबूर हैं। प्रवासी मजदूर, बुजुर्ग और बीमार लाभार्थी तो इस प्रक्रिया से पूरी तरह बाहर होते जा रहे हैं।

आदिम जनजातियों पर खास असर

मनिका प्रखंड में आदिम जनजाति समुदाय पर इसका खास असर दिखा। मई 2025 तक वहां के 1120 आदिम जनजाति कार्डधारकों में से 797 (यानी 71%) का ई-केवाईसी नहीं हो पाया था। इनमें से 21% के आधार नंबर राशनकार्ड से जुड़े ही नहीं थे। उचवाबाल गांव में देखा गया कि अधिकांश परिवारों के कार्ड पर केवल एक सदस्य का ई-केवाईसी हुआ था और उन्हें यही बताया गया कि इतना ही काफी है, जबकि बाद में राशन वितरण रोका गया।

निर्देश तो जारी, पर अमल कमजोर

केंद्र सरकार ने ई-केवाईसी न होने की स्थिति में लाभार्थियों को चिह्नित करने और कारण दर्ज करने के निर्देश दिए थे। हालांकि राज्य सरकार की ओर से राशन डीलरों को इसके लिए कोई मानकीकृत फॉर्मेट नहीं दिया गया, जिससे डेटा बिखरा हुआ और अधूरा रह गया। अब तक राज्य सरकार यह स्पष्ट नहीं कर सकी है कि जिन कार्डधारकों का ई-केवाईसी नहीं हो सका है, उनके लिए क्या विकल्प होगा।

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