मो राशिद की तीन कविताएं

1

मैं इस देश का सच्चा सिपाही बनूंगा,
देश की आवाज़ पे आगे-आगे चलूंगा,
ग़म नहीं गर देश के लिए मरूंगा,
मैं इस देश का सच्चा सिपाही बनूंगा !!
बर्फ की चोटी हो या आग का दरिया,
दुश्मन हो सामने तो पार जाकर लडूंगा,
मैं इस देश का सच्चा सिपाही बनूंगा !!
दुश्मन के घेरे में भी भेद नहीं खोलूंगा,
यातना जो भी दे, हँस-हँस के सहूंगा,
मैं इस देश का सच्चा सिपाही बनूंगा !!
मुश्किलें जो भी आएं, कोई परवाह नहीं,
सत्य करता हूँ, सत्य ही करता रहूंगा,
मैं इस देश का सच्चा सिपाही बनूंगा !!
अब देश पे जान देने की तमन्ना है राशिद,
दूर है मंज़िल, अगर इंतज़ार करूंगा,
मैं इस देश का सच्चा सिपाही बनूंगा !!


2

अपनी धरती और झंडे से पहचान बनानी होगी,
मिल-जुल कर एक नया भारत बनाना होगा!
अपनी तिजोरी भरने की लालच छोड़नी होगी,
ग़रीबों और मुफ़लिसों को सँभालना होगा!
जो वादा करके बार-बार मुकर जाते हैं,
सच्चाई का आईना उनको दिखाना होगा!
सूखे का पतझड़ और वीराना कब तक,
बहारों का मौसम अब लाना होगा!
फूट डालो, राज करो — इस घाव है गहरा,
एकजोहती का मरहम हम सबको लगाना होगा!
मैली हो गई है मूरत बदगुमानी के दाग से,
प्यार के रंग से उसको सजाना होगा!
भटक गए हैं जो राहें वतन से,
उनको कठिन शब्दों में अब समझाना होगा!
नफ़रतों से कुछ हासिल नहीं होगा राशिद!
हुक्मरानों को बार-बार बताना होगा।


3

ऐ शहबाज़, तू क्या शरीफ़ कहलाएगा,
जिहादियों की फ़ौज जो तू उगाएगा।
रिवायते-इस्लाम से बेबहरह है तू,
मरने के बाद जहन्नुम में जगह पाएगा !!
ख़ून-ए-नाहक़ मासूमों का बहाने वाले,
मरके ख़ुदा को क्या मुँह दिखाएगा,
ख़्वाब-ए-कश्मीर का देखने वाले,
इसी मिट्टी की ख़ाक में मिल जाएगा !!
न ले इम्तिहान तू हमारे सब्र का,
हमारे ग़ुस्से के सैलाब में बह जाएगा,
न्यूक्लियर बम की गीदड़ भभकी देने वाले,
इसी की आग में जल के मर जाएगा !!
ये नया भारत है आज के दौर का,
बच्चा-बच्चा सरहदों तक निकल जाएगा,
अपनी हिमाक़त से बाज़ न आया तू,
लाहौर भी भारत का हिस्सा बन जाएगा!!

(कवि मो. राशिद, सैनिक स्कूल तिलैया के शिक्षक रहे हैं)

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